________________ 222] (उत्तराध्ययनसूत्र का मन भोगवाद के संस्कारों से लिप्त था किन्तु पुरोहित के द्वारा अपने दोनों पुत्रों को त्यागमार्ग पर आरूढ होने का उदाहरण देकर त्याग की महत्ता समझाने से पुरोहितानी भी प्रबुद्ध हो गई। पुरोहित-परिवार के चार सदस्यों को सर्वस्व गृहत्याग कर जाते देख रानी कमलावती के अन्तःकरण में प्रशस्त स्फुरणा हुई / उसकी प्रेरणा से राजा के भी मन पर छाया हया धन और कामभोग-सेवन का मोह नष्ट हो गया / यों राजा और रानी भी सर्वस्व त्याग कर प्रवजित हुए। इसमें प्राचीनकालिक एक सामाजिक परम्परा का उल्लेख भी है कि जिस व्यक्ति का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था या जिसका सारा परिवार गृहत्यागी श्रमण बन जाता था, उसकी धनसम्पत्ति पर राजा का अधिकार होता था। इस परम्परा को रानी कमलावती ने निन्द्य बताकर राजा की वृत्ति को मोड़ा है / यह सारा वर्णन 38 वीं से 48 वीं गाथा तक है।' अन्तिम 5 गाथाओं में राजा-रानी के प्रवजित होने, तप-संयम में घोर-पराक्रमी बनने तथा पुरोहितपरिवार के चारों सदस्यों के द्वारा मुनिजीवन स्वीकार करके तप-संयम द्वारा मोहमुक्त एवं सर्वकर्ममुक्त बनने का उल्लेख है / 2 * नियुक्तिकार ने ग्यारह गाथाओं में इनकी पूर्वकथा प्रस्तुत की है। वह संक्षेप में इस प्रकार है पूर्व-अध्ययन में प्रतिपादित चित्र और सम्भूत के पूर्वजन्म में दो गोपालपुत्र मित्र थे। उन्हें साधु की सत्संगति से सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई। वे दोनों वहाँ से भरकर देवलोक में देव हुए / वहाँ से च्यव कर क्षितिप्रतिष्ठित नगर में वे दोनों इभ्यकुल में जन्मे / यहाँ चार इभ्य श्रेष्ठिपुत्र उनके मित्र बने / उन्होंने एक बार स्थविरों से धर्म-श्रवण किया और विरक्त होकर प्रबजित हो गए / चिरकाल तक संयम का पालन किया। अन्त में समाधिमरणपूर्वक शरीरत्याग करके ये छहों सौधर्म देवलोक के पद्मगुल्म नामक विमान में चार पल्योपम की स्थिति वाले देव हुए। दोनों भूतपूर्व गोपालपुत्रों को छोड़कर शेष चारों वहाँ से च्युत हुए। कुरुजनपद के इषुकार नगर में जन्मे / उनमें से एक जीव तो इषुकार नामक राजा बना, दूसरा उसी राजा को रानी कमलावतो, तीसरा भृगु नामक पुरोहित और चौथा हुआ-भृगु पुरोहित की पत्नी यशा। बहुत काल बीता। भृगु पुरोहित के कोई पुत्र नहीं हुआ / पति-पत्नी दोनों, 'वंश कैसे चलेगा?' इसी चिन्ता से ग्रस्त रहते थे। दोनों गोपालपुत्रों ने, जो अभी तक देवभव में थे, एक बार अवधिज्ञान से जाना कि वे दोनों इषकार नगर में भृगु पुरोहित के पुत्र होंगे; वे श्रमणवेश में भृगु पुरोहित के यहाँ आए / पुरोहित दम्पती ने वन्दना की। दोनों श्रमणवेषी देवों ने धर्मोपदेश दिया, जिसे सुनकर पूरोहितदम्पती ने श्रावकवत ग्रहण किए / श्रद्धावश पुरोहितदम्पती ने पूछा-'मुनिवर ! हमें कोई पुत्र प्राप्त होगा या नहीं ?' श्रमणयुगल ने कहा-'तुम्हें दो पुत्र होंगे, किन्तु वे बचपन में ही दीक्षा ग्रहण कर लेंगे / उनकी प्रव्रज्या में तुम कोई विघ्न उपस्थित नहीं कर सकोगे। वे मुनि बनकर धर्मशासन की प्रभावना करेंगे।' इतना कह कर श्रमणवेषी देव वहाँ से चले गए। 1. उत्तरा. मूलपाठ, 38 से 48 वी गाथा तक 2. उत्तरा. मूलपाठ, गा. 49 से 53 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org