________________ 204 // [उत्तराध्ययनसूत्र दूर कर सकें। हे यक्षपूजित संयत ! पाप हमें बताइए कि कुशल (तत्त्वज्ञानी) पुरुष श्रेष्ठ यज्ञ (सुइष्ट) किसे कहते हैं ? 41. छज्जीवकाए असमारभन्ता मोसं प्रदत्तं च असेवमाणा। परिग्गहं इथिओ माण-मायं एवं परिन्नाय चरन्ति दन्ता / 41] (मुनि-) मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले (दान्त) मुनि (पृथ्वी आदि) षट्जीवनिकाय का प्रारम्भ (हिंसा) नहीं करते, असत्य नहीं बोलते, चोरी नहीं करते, परिग्रह, स्त्री, मान और माया के स्वरूप को जान कर एवं उन्हें त्याग कर प्रवृत्ति करते हैं / 42. सुसंवुडो पंचहि संवरेहिं इह जीवियं अणवकंखमाणो। वोसहकाओ सुइचत्तदेहो महाजयं जयई जन्नसिढें / / [42] जो पांच संवरों से पूर्णतया संवत होते हैं, इस मनुष्य-जन्म में (असंयमी-) जीवन की आकांक्षा नहीं करते, जो काया (शरीर के प्रति ममत्व या आसक्ति) का व्युत्सर्ग (परित्याग) करते हैं, जो शुचि (पवित्र) हैं, जो विदेह (देह-भावरहित) हैं, वे महाजय रूप श्रेष्ठ यज्ञ करते हैं। 43. के ते जोई ? के व ते जोइठाणे? का ते सुया ? कि व ते कारिसंग ? एहा य ते कयरा सन्ति ? भिक्खू ! कयरेण होमेण हुणासि जोई ? [43] (रुद्रदेव-) हे भिक्षु ! तुम्हारी ज्योति (अग्नि) कौन-सी है ? तुम्हारा ज्योति-स्थान कौन-सा है ? तुम्हारी (घी आदि को आहुति डालने की) कुड़छियाँ कौन-सी हैं ? (अग्नि को उद्दीप्त करने वाले) तुम्हारे करीषांग (कण्डे) कौन-से हैं ? (अग्नि को जलाने वाले) तुम्हारे इन्धन क्या हैं ? एवं शान्तिपाठ कौन-से हैं ? तथा किस होम (हवनविधि) से आप ज्योति को (आहुति द्वारा) तृप्त (हुत) करते हैं ? 44. तवो जोई जीवो जोइठाणं जोगा सुया सरीरं कारिसंग। कम्म एहा संजमजोग सन्ती होमं हुणामी इसिणं पसत्थं / [44] (मुनि-) (बाह्याभ्यन्तरभेद वाली) तपश्चर्या ज्योति है, जीव (आत्मा) ज्योतिस्थान (अग्निकुण्ड) है, योग (मन, वचन और काय की शुभप्रवृत्तियाँ (घी आदि डालने की) कुड़छियाँ हैं; शरीर (शरीर के अवयव) अग्नि प्रदीप्त करने के कण्डे हैं; कर्म इन्धन हैं, संयम के योग (प्रवृत्तियाँ) शान्तिपाठ हैं। ऐसा ऋषियों के लिए प्रशस्त जीवोपघातरहित (होने से विवेकी मुनियों द्वारा प्रशंसित) होम (होमप्रधान-यज्ञ) मैं करता हूँ। 45. के ते हरए ? के य ते सन्तितित्थे ? कहिंसि हाओ व रयं जहासि ? आइक्ख णे संजय ! जक्खपूइया ! इच्छामो नाउं भवप्रो सगासे || [45] (रुद्रदेव-) हे यक्षपूजित संयत ! आप हमें यह बताइए कि आपका ह्रद ( जलाशय) कौन-सा है ? अापका शान्तितीर्थ कौन-सा है ? आप कहाँ स्नान करके रज (कर्मरज) को झाड़ते (दूर करते) हैं ? हम आपसे जानना चाहते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org