________________ नवम अध्ययन : नमिप्रव्रज्या] [145 खंति निउणपागारं क्षमा,—उपलक्षण से मार्दव, आर्जव प्रादि सहित क्षमा, श्रद्धारूप नगर को ध्वस्त करने वाले अनन्तानुबन्धीकषाय की अवरोधक होने से क्षान्ति को समर्थ सुदृढ़ कोट या परकोटा बना कर / सयग्घी-शतघ्नी-एक बार में सौ व्यक्तियों का संहार करने वाला यंत्र, तोप जैसा अस्त्र / ' चतुर्थ प्रश्नोत्तर : प्रासादादि-निर्माण कराने के सम्बन्ध में 23. एयमझें निसामित्ता हेउकारण-चोइयो। तओ नमि गयरिसि देविन्दो इणमब्बवी // [23] देवेन्द्र ने इस बात को सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित वमि राजर्षि से इस प्रकार कहा 24. 'पासाए कारइत्ताणं वद्धमाणगिहाणि य / ___ वालग्गपोइयाओ य तओ गच्छसि खत्तिया ! // ' [24] हे क्षत्रिय ! पहले आप प्रासाद (महल), वर्धमानगृह (वास्तुशास्त्र के अनुसार विविध वर्द्धमान घर) और बालाग्रपोतिकाएं (–चन्द्रशालाएँ) बनवाकर, तदनन्तर जाना—अर्थात्प्रवजित होना। 25. एयमलृ निसामित्ता हेउकारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी / [25] देवेन्द्र की बात को सुनकर हेतु और कारण से प्रेरित नमिराजर्षि ने देवेन्द्र से इस प्रकार कहा---- 26. 'संसयं खलु सो कुणई जो मग्गे कुणई घरं / जत्थेव गन्तुमिच्छेज्जा तत्थ कुम्वेज्ज सासयं // ' [26] जो मार्ग में घर बनाता है, वह निश्चय ही संशयशील बना रहता है (पता नहीं, कब उसे छोड़ कर जाना पड़े) / अतएव जहाँ जाने की इच्छा हो, वहीं अपना शाश्वत घर बनाना चाहिए। विवेचन-इन्द्र के द्वारा प्रस्तुत हेतु और कारण-अपने वंशजों के लिए आपको प्रासाद आदि बनवाने चाहिए, क्योंकि आप समर्थ और प्रेक्षावान् हैं; यह हेतु है और कारण है—प्रासाद आदि बनवाए बिना सामर्थ्य के होते हुए भी पाप में प्रेक्षावत्ता-सूक्ष्मबुद्धिमत्ता घटित नहीं होती। 'क्षत्रिय' शब्द से सामर्थ्य और प्रेक्षावत्ता उपलक्षित की है। नमि राजषि के उत्तर का आशय -जिस व्यक्ति को यह संदेह होता है कि मैं अपने अभीष्ट शाश्वत स्थान (मोक्ष) तक पहुँच सकूँगा या नहीं, वही मार्ग में संसार में अपना घर बनाता है। मुझे तो दृढ़ विश्वास है कि मैं वहाँ पहुँच जाऊँगा और वहीं पहुँचकर मैं अपना शाश्वत (स्थायी) 1. वृहद्वति, पत्र 311 2. (क) बृहदवृत्ति, पत्र 311 (ख) उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका, भा. 2, पृ. 408 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org