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________________ गुरुदेव श्री जोरावरमल जी महाराज का संकल्प ___मैं जब प्रातःस्मरणीय गुरुदेव स्वामीजी श्री जोरावरमलजी म. के सान्निध्य में प्राममों का अध्ययनअनुशीलन करता था तब प्रागमोदय समिति द्वारा प्रकाशित आचार्य अभयदेव व शीलांक की टीकानों से युक्त कुछ आगम उपलब्ध थे। उन्हीं के आधार पर मैं अध्ययन-वाचन करता था। गुरुदेवश्री ने कई बार अनुभव कियायद्यपि यह संस्करण काफी श्रमसाध्य व उपयोगी है, अब तक उपलब्ध संस्करणों में प्रायः शुद्ध भी है, फिर भी अनेक स्थल अस्पष्ट हैं, मूलपाठों में व वत्ति में कहीं-कहीं अशुद्धता व अन्तर भी है। सामान्य जन के लिये दुरूह तो हैं ही। चुकि गुरुदेवधी स्वयं प्रागमों के प्रकाण्ड पण्डित थे, उन्हें प्रागमों के अनेक गूढार्थ गुरु-गम से प्राप्त थे। उनकी मेधा भी व्युत्पन्न व तर्क-प्रवण थी, अत: वे इस कमी को अनुभव करते थे और चाहते थे कि आगमों का शुद्ध, सर्वोपयोगी ऐसा प्रकाशन हो, जिससे सामान्य ज्ञान वाले श्रमण-श्रमणी एवं जिज्ञासु जन लाभ उठा सकें। उनके मन की यह तड़प कई बार व्यक्त होती थी। पर कुछ परिस्थितियों के कारण उनका यह स्वप्न-संकल्प साकार नहीं हो सका, फिर भी मेरे मन में प्रेरणा बन कर अवश्य रह गया। इसो अन्तराल में प्राचार्य श्री जवाहरलाल जी महाराज, श्रमणसंघ के प्रथम प्राचार्य जैनधर्मदिवाकर प्राचार्य श्री आत्माराम जी म०, विद्वद्रत्न श्री घासीलाल जी म. प्रादि मनीषी मुनिवरों ने प्रागमों की हिन्दी, संस्कृत, गुजराती ग्रादि भाषाओं में सुन्दर विस्तृत टीकायें लिखकर या अपने तत्त्वावधान में लिखबा कर कमी को पूरा करने का महनीय प्रयत्न किया है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आम्नाय के विद्वान् श्रमण परमश्रुतसेवी स्व० मुनि श्री पुण्यविजयजी ने प्रागमसम्पादन की दिशा में बहुत व्यवस्थित व उच्चकोटि का कार्य प्रारम्भ किया था। विद्वानों ने उसे बहुत ही सराहा / किन्तु उनके स्वर्गवास के पश्चात उस में व्यवधान उत्पन्न हो गया। तदपि आगमज्ञ मुनि श्री जम्बूविजयजी ग्रादि के तत्त्वावधान में प्रागम-सम्पादन का सुन्दर व उच्चकोटि का कार्य प्राज भी चल रहा है। वर्तमान में तेरापंथ सम्प्रदाय में आनार्य श्री तुलसी एवं युवाचार्य महाप्रज्ञजो के नेतृत्व में आगम-सम्पादन का कार्य चल रहा है और जो पागम प्रकाशित हुए हैं उन्हें देखकर विद्वानों को प्रसन्नता है / यद्यपि उनके पाठनिर्णय में काफी मतभेद की गुंजाइश है, तथापि उनके श्रम का महत्त्व है। मुनि श्री कन्हैयालालजी म. “कमल' आगमों की वक्तव्यता को अनुयोगों में वर्गीकृत करके प्रकाशित कराने की दिशा में प्रयत्नशील हैं उनके द्वारा सम्पादित कुछ प्रागमों में उनकी कार्यशैली की विशदता एवं मौलिकता स्पष्ट होती है। अागम-साहित्य के वयोवृद्ध विद्वान पं० श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल, विश्रुत मनोषी श्री दलसुखभाई मालवणिया जैसे चिन्तनशील प्रज्ञापुरुष आगमों के आधुनिक सम्पादन की दिशा में स्वयं भी कार्य कर रहे हैं तथा अनेक विद्वानों का मार्ग-दर्शन कर रहे हैं / यह प्रसन्नता का विषय है। इस सब कार्य-शैली पर विहंगम अवलोकन करने के पश्चात मेरे मन में एक संकल्प उठा। अाज प्रायः सभी विद्वानों की कार्यशैली काफी भिन्नता लिये हए है। कहीं अागमों का मूल पाठ मात्र प्रकाशित किया जा रहा है तो कहीं विशाल व्याख्याएँ की जा रही हैं। एक पाठक के लिए दुर्बोध है तो दूसरी जटिल / सामान्य पाठक को सरलतापूर्वक आगमज्ञान प्राप्त हो सके, एतदर्थ मध्यममार्ग का अनुसरण आवश्यक है। आगमों का ऐसा एक संस्करण होना चाहिए जो सरल हो, सुबोध हो, संक्षिप्त और प्रामाणिक हो। मेरे स्वर्गीय गुरुदेव ऐसा ही चाहते थे। इसी भावना को लक्ष्य में रख कर मैंने 5-6 वर्ष पूर्व इस विषय की चर्चा प्रारम्भ की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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