________________ (दशवकालिकसूत्र जैन धर्म का तत्त्वबोध समझाने वाला पवित्र ग्रन्थ बताया है। जो भी हो, इन चारों मूलसूत्रों में जैनदर्शन के मौलिक सिद्धान्तों और जैन जीवन का रहस्य संक्षेप में समझाया गया है; किन्तु इसको मूल संज्ञा प्राचार्य हेमचन्द्र (12 वीं शताब्दी) के बाद में प्रचलित हुई है।" * रचयिता--नियुक्तिकार के मतानुसार-दशवकालिक सूत्र की रचना शय्यंभव नाम के प्राचार्य ने की है / 6 इस सम्बन्ध में प्रचलित अनुश्रुति यह है कि राजगृहनिवासी दिग्गज विद्वान् यज्ञपरायण ब्राह्मण श्रीशय्यंभव श्रीजम्बूस्वामी के पट्टधर श्रीप्रभवस्वामी के उपदेश से विरक्त होकर मुनि बन गए और प्रभवस्वामी के उत्तराधिकारी पट्टधर प्राचार्य हुए। जिस समय शय्यंभव मुनि बने थे, उस समय उनकी धर्मपत्नी गर्भवती थी। उनके दीक्षित होने के बाद पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम 'मनक' रखा गया। सम्भवत: 10-11 वर्ष की उम्र में 'मनक' अपनी माता से पूछ कर चम्पानगरी में अपने पिता शय्यं भवाचार्य से मिला / उनके सत्संग से विरक्त होकर वह भी दीक्षित हो गया। प्राचार्य शय्यंभव ने ज्ञानबल से देखा कि मनक (शिष्य) की आयु केवल छह महीने शेष रही है / अतः मनक श्रमण को शीघ्र चारित्राराधना कराने हेतु शय्यभवाचार्य ने पूर्वश्रुत में से उद्ध त करके दशवैकालिक सूत्र की रचना की / इस शास्त्र के अध्ययन से मनक श्रमण ने छह महीने में अपना कार्य सिद्ध कर लिया। प्रामाणिकता- दशवकालिक सूत्र के रचयिता श्रीशय्यंभवाचार्य, भगवान् महावीर के पश्चात् प्रभवस्वामी से लेकर स्थूलभद्र तक हुए 6 श्रुतकेवलियों में से द्वितीय श्रुतकेवली और चतुर्दश पूर्वधारी थे; इसीलिए नन्दीसूत्र में इसे अंगबाह्य एवं सम्यक् श्रुत में परिगणित किया है। इसके अतिरिक्त इसके छठे अध्ययन की आठवीं गाथा में 'महावीरेण देसिअं' तथा इक्कीसवीं गाथा में 'नायपुत्तेण ताइणा' आदि जो पद उपलब्ध होते हैं, उनसे भी इस सूत्र के वीरवचनानुसार होने से इसकी प्रामाणिकता सिद्ध होती है / महानिशीथ-सूत्र में अंकित भगवान् महावीर स्वामी के द्वारा गौतम स्वामीजी को दिये गए वक्तव्य से भी इस सूत्र की प्रामाणिकता पूर्णतया स्पष्ट होती है। दश अध्ययनों में प्रतिपाद्य विषय प्रस्तुत दशवैकालिक में 10 अध्ययन हैं / इसके अन्त में दो चलिकाएँ हैं / दश अध्ययनों में (1) प्रथम अध्ययन में धर्म की प्रशंसा फल और भ्रमर के स भिक्षाजीवी साधु की सुन्दर तुलना की गई है। (2) द्वितीय अध्ययन में कामविजय के सन्दर्भ में राजीमती और रथनेमि का संवाद देकर श्रमणजीवन में धीरता और स्थिरता का उपदेश 4. ....In Hemacandra's Parisistaparvan 5.81 FF. in accordance with earlier modeis should ascribe the orgin fo the Dasaveyaliya Sutta to an intention to condense the essence of the sacred Lore into an anthology. -दशवै. (संतबालजी), प्रस्तावना 5. दशवं. (आचार्य आत्मारामजी) –प्रस्तावना 11 6. “निज्जूढं किर सेज्जभवेन दसकालियं तेणं / ' -भद्रबाहुनियुक्ति गा. 12 7. दशवै. (प्राचार्य आत्मारामजी), प्रस्तावना पृ. 4 8. (क) महानिशीथ, अ. 5 दुष्षमारक प्रकरण / (ख) अथ प्रभवः प्रभुः / शय्यंभवो यशोभद्रः सम्भूतविजयस्ततः / भद्रबाहुः स्थूलभद्रः श्रुतकेवलिनो हि षट् / -अभिधानचिन्तामणि, देवाधिदेवकाण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org