________________ लिस्यसपश्चन, प्रावि को बनाम जिन्नत धुम्र-पान की नलिका रखना, रोग की संभावना से बचने के लिए, रूप-बल आदि को बनाए रखने के लिए वमन करना, वस्तिकर्म (अपान मार्ग से तैल आदि चढ़ाना), विरेचन करना, आँखों में अंजन आँजना, दांतों को दतौन से घिसना, शरीर में तैल आदि की मालिश, शरीर को आभूषणादि से अलंकृत करना आदि श्रमण के लिए वयं हैं। अञ्जनाभ्यञ्जनोन्मर्दस्त्यवलेखामिषं मधु / स्रग्गन्धलेपालंकारांस्त्यजेयुर्ये धृतव्रताः / / -भागवत 7 / 12 / 12 जो ब्रह्मचर्य का व्रत धारण करें, उन्हें चाहिये कि वे सुरमा या तेल न लगावें। उबटन न मलें। स्त्रियों के चित्र न बनावें। मांस और मद्य से कोई सम्बन्ध न रक्खें। फूलों के हार, इत्र-फुलेल, चन्दन और प्राभूषणों का त्याग कर दें। यह विधान ब्रह्मचारी के लिए है। दशवकालिक के तीसरे अध्ययन की बारहवीं गाथा और मनुस्मृति के छठे अध्ययन के तेवीसवें श्लोक की समानता देखिए पायावयंति गिम्हेसु, हेमंतेसु अवाउडा / वासासु पडिसंलीणा, संजया सुसमाहिया / / –दशवैकालिक 3312 सुसमाहित निर्ग्रन्थ ग्रीष्म में सूर्य को आतापना लेते हैं, हेमन्त में खुले बदन रहते हैं और वर्षा में प्रतिसलीन होते हैं-एक स्थान में रहते हैं। ग्रीष्मे पञ्चतापास्तु स्याद्वर्षास्वभ्रावकाशिकः / आर्द्रवासास्तु हेमन्ते, क्रमशो वर्धयंस्तपः / / --मनुस्मृति अ. 6, श्लोक 23 ग्रीष्म में पंचाग्नि से तपे, वर्षा में खुले मैदान में रहे और हेमन्त में भीगे वस्त्र पहन कर क्रमशः तपस्या की वृद्धि करे / यह विधान वानप्रस्थाश्रम को धारण करने वाले साधक के लिए है। दशवकालिक के चतुर्थ अध्ययन की सातवी गाथा है कहं चरे कह चिट्ठे कहभासे कहं सए। कहं भजतो भासंतो पावंकम्मं न बंधई॥ कसे चले ? कैसे खड़ा हो? कैसे बैठे? कैसे सोए ? कैसे खाए ? कैसे बोले ? जिससे पाप-कर्म का बन्ध न हो। श्रीमद्भगवद्गीता में स्थितप्रज्ञ के विषय में पूछा गया है। उपरोक्त गाथा की इस श्लोक से तुलना कीजिए स्थितप्रज्ञस्य का भाषा, समाधिस्थस्य केशव ! / स्थितधीः किं प्रभाषेत, किमासीत ब्रजेत किम् // –श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 54 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org