________________ 398] [वशवकालिकसूत्र 545. जया य बंदिमो होइ, पच्छा होइ प्रबंदिमो। देवया व त्या ठाणा, स पच्छा परितप्पई // 4 // 546. जया य पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूहमो। राया व रज्जपमट्ठो, स पच्छा परितप्पई / / 5 / / 547. जया य माणिमो होइ, पच्छा होइ अमाणिमो। सेटिव्व कम्बड़े छूढो स पच्छा परितप्पई // 6 // 548. जया य थेरओ होइ समइक्कंतजोव्वणो / + मच्छो व्व गलं गिलित्ता स पच्छा परितप्पई // 7 // [जया य कुकुडुबस्स कुतत्तीहि विहम्मई / हत्थी व बंधणे बद्धो स पच्छा परितप्पई / / ] 549. पुत्तदार-परिकिण्णो मोहसंताणसंतओ। पंकोसन्नो जहा नागो, स पच्छा परितप्पई // 8 // _[543] इस विषय में कुछ श्लोक हैं-जब अनार्य (साधु) भोगों के लिए (चारित्र-) धर्म को छोड़ता है, तब वह भोगों में मूच्छित बना हुअा अज्ञ (मूढ) अपने भविष्य को सम्यक्तया नहीं समझता / / 2 / / [544] जब (कोई साधु) उत्प्रवजित होता है (अर्थात् चारित्रधर्म त्याग कर गृहवास में प्रवेश करता है) तब वह (अहिंसादि) सभी धर्मों से परिभ्रष्ट हो कर वैसे ही पश्चात्ताप करता है, जैसे प्रायु पूर्ण होने पर देवलोक के वैभव से च्युत हो कर पृथ्वी पर पड़ा हुआ इन्द्र / / 3 / / [545] जब (साधु प्रवजित अवस्था में होता है, तब) वन्दनीय होता है, वही (अब संयम छोड़ने के) पश्चात् अवन्दनीय हो जाता है, तब वह उसी प्रकार पश्चात्ताप करता है, जिस प्रकार अपने स्थान से च्युत देवता / / 4 / / [546] प्रवजित अवस्था में साधु पूज्य होता है, वही (उत्प्रवजित हो कर गृहवास में प्रवेश करने के पश्चात् जब अपूज्य हो जाता है, तब वह वैसे हो परिताप करता है, जैसे राज्य से भ्रष्ट राजा // 5 // [547] (दीक्षित अवस्था में) साधु माननीय होता है, वही (उत्प्रवजित होकर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के) पश्चात् जब अमाननीय हो जाता है, तब वह वैसे ही पश्चात्ताप करता है, जैसे कर्बट (छोटे-से गंवारू गाँव) में अवरुद्ध (नजरबंद) किया हुआ (नगर-) सेठ // 6 // पाठान्तर---+ समइक्कंत जुन्वणो। अधिकपाठ-[] यह गाथा प्राचीन प्रतियों में उपलब्ध नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org