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________________ नवम अध्ययन : विनय-समाधि] आचार : दो स्वरूप-(१) मोक्षप्राप्ति में हेतुभूत ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचाररूप पंचाचार; (2) सम्यक्चारित्र मूलगुण-उत्तरगुणमय आचार। प्रारहंतेहि हेहि-(१) ग्रहन्तों ने मोक्षसाधना के लिए अनास्रवत्व (संवर) और निर्जरा आदि जिन गुणों का उपदेश दिया है या पाचरण किया है, उन हेतुओं---उद्देश्यों से अथवा (2) अर्हत्प्रणीत शास्त्रों में जिन प्राचारों द्वारा जीव का आस्रवरहित होना बताया है, उन प्रास्रवनिरोधादि हेतुओं से अथवा (3) अर्हत्पद की प्राप्ति के उद्देश्यों से / __'पडिपुण्णाययं' प्रादि पदों के विशेषार्थ : परिपूयत : दो अर्थ-(१) सूत्रार्थों से अत्यन्त प्रायत–प्रतिपूर्ण, अथवा (2) जिसका प्रायत (आमामीकाल-भविष्य) प्रतिपूर्ण है। दंते-दान्त, इन्द्रिय और नो-इन्द्रिय (मन) का दमन करने वाला। __भावसंधए : भावसन्धक-भाव का अर्थ है-मोक्ष, उसका सन्धक-प्रर्थात् -मोक्ष को प्रात्मा के निकट करने वाला अथवा दूरस्थ मोक्ष (भाव) को अपने साथ सम्बद्ध करने वाला। चतुर्विध-समाधि-फल-निरूपण 519. अभिगम चउरो समाहियो, सुविसुद्धा सुसमाहियप्पओ। विउल-हिय+सुहावहं पुणो, कुम्वइ सो पयखेममप्पणो // 13 // 520. जाई-मरणाओ मुच्चई, इत्थंथं च चएइ सव्वसो। सिद्ध बा भवइ* सासए, देवे वा अप्परए मिहिड्डिए // 14 // -त्ति बेमि / / विषय-समाहीए चउत्थो उद्देसो समत्तो // 9-4 / / नवमं अज्झयणं : विरणयसमाही समत्तं // 6 // 8. (क) 'पंचविधस्स णाणाइ-पायारस्स.......।' –जिन. चुणि, पृ. 318 (ख) 'ग्राचारं-मूलगणोत्तरगणमय ..........!' -हारि. वृत्ति, पत्र 258 (क) 'जे अरहतेहि अणासवत्त-कम्मणिज्जरणादयो गणा भणिता प्रायिण्णा वा, ते प्रारहंतिया हेतवो कारणाणि / ' -अगस्त्यचूणि (ख) प्रार्हतः -ग्रहत् सम्बन्धिभिहेतुभिरनाश्रवत्वादिभिः। -हारि. वृत्ति, पत्र 258 (ग) दशवे. (आचार्यश्री प्रात्मारामजी म.), पत्राकार पृ. 951 10. (क) .... ."सुतत्थेहि पडिकुण्गो, प्रायया अच्वत्थं (अत्यन्त)। जिन. चूणि, पृ. 329 (ख) पडिपुण्ण ग्रायतं आगामि कालं सब-आगामि कालं पडि पुण्णायतं / -अगस्त्य चूणि (ग) दान्त-इन्द्रिय-नोइन्द्रिय-दमाभ्याम् / भाव-सन्धक:-भावो मोक्षस्तत्सन्धक प्रात्मनो मोक्षासनकारी / -हा, वृ.,पृ. 258 (घ) भावो-मोक्खो तं दूरस्थमपणा सह संबंधए। -जि. चु., पृ. 329 पाठान्तर-+हिों। * हवइ / महड्ढिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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