________________ नवमं अज्झयणं : विणय-समाही नवम अध्ययन : विनय-समाधि चउत्थो उद्देसो : चतुर्थ उद्देशक विनय-समाधि और उसके चार स्थान 507. सुयं मे पाउसं ! तेण भगक्या एवमक्खायं-इह खलु थेरेहि भगवंतेहि चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता // 1 // 508 प्र. कयरे खलु ते थेरेहि भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता ? // 2 // 509 उ. इमे खलु ते थेरेहिं भगवतेहि चत्तारि विणयसमाहिढाणा पण्णत्ता; तं जहाविणयसमाही 1, सुयसमाही 2, तवसमाही 3, आयारसमाही 4 // 3 // 510. विणए 1 सुए 2 तवे 3 य आयारे निच्चं *पंडिया। अभिरामयंति अप्पाणं जे भवंति जिइंविया // 4 // [507] [गुरु-] आयुष्मन् ! मैंने सुना है, उन भगवान् (प्रज्ञापक आचार्य प्रभवस्वामी) ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है-इस (निर्ग्रन्थ-प्रवचन) में स्थविर भगवंतों ने विनयसमाधि के चार स्थानों का प्रज्ञापन किया है / / 1 / / [508 प्र.] [शिष्य-] स्थविर भगवन्तों ने विनयसमाधि के वे चार स्थान कौन-से प्ररूपित किये हैं ? / / 2 / / [509 उ.] [गुरु--] वे विनयसमाधि के चार स्थान ये हैं जिनका स्थविर भगवन्तों ने प्रज्ञापन किया है; जैसे—(१) विनयसमाधि, (2) श्रुतसमाधि, (3) तपःसमाधि, और (4) प्राचारसमाधि // 3 // [510] जो जितेन्द्रिय होते हैं, वे पण्डित (मुनिवर) अपनी आत्मा को सदा विनय, श्रुत, तप और प्राचार (इन चार प्रकार के समाधि-स्थानों) में निरत रखते हैं // 4 // विवेचन–विनयसमाधि के सूत्र–पूर्वोक्त तीन उद्देशकों में विनय का माहात्म्य, अविनय से होने वाली हानि, विनय से प्राप्त होने वाली फलश्रुति आदि का स्फुट निरूपण करने के पश्चात् प्रस्तुत उद्देशक में शास्त्रकार विनयसमाधि के प्रमुख सूत्रों का स्पष्ट प्रतिपादन प्रश्नोत्तर-शैली में प्रस्तुत कर रहे हैं। पाठान्तर-* सया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org