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________________ नवम अध्ययन : विनय-समाधि] [359 504. जे माणिया सययं माणयंति, जत्तण कम्न व निवेसयंति / ते माणए माणरिहे तबस्सी, जिइंदिए सच्चरए, स पुज्जो // 13 // 505. तेसि गुरूणं गुणसागराणं,* सोच्चाण मेहावि सुभासियाई / चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो, चउक्कसायावगए, स पुज्जो // 14 // [462} जिस प्रकार प्राहिताग्नि (अग्निहोत्री ब्राह्मण) अग्नि की शुश्रूषा करता हुआ जाग्रत (सावधान) रहता है ; उसी प्रकार जो प्राचार्य की शुश्रूषा करता हुअा जाग्रत रहता है तथा जो प्राचार्य के आलोकित (दृष्टि या चेहरे) एवं इंगित (चेष्टा) को जान कर उनके अभिप्राय की आराधना करता है, वही (शिष्य) पूज्य होता है // 1 // [463] जो (शिष्य) प्राचार के लिए विनय (गुरुविनय-भक्ति) का प्रयोग करता है, जो (प्राचार्य के वचनों को) सुनने की इच्छा रखता हुआ (उनके) वचन को ग्रहण करके, उपदेश के अनुसार कार्य (या आचरण) करना चाहता है और जो गुरु की पाशातना नहीं करता, वह पूज्य होता है / / 2 // [464] अल्पवयस्क होते हुए भी (दीक्षा) पर्याय में जो ज्येष्ठ हैं, (उन सब पूजनीय) रत्नाधिकों के प्रति जो (साधु) विनय का प्रयोग करता है, (जो सर्वथा) नम्र हो कर रहता है, सत्यवादी है, गुरु की सेवा में रहता है, (या उन्हें प्रणिपात करता है) और जो गुरु के वचनों (आदेशों) का पालन करता है, वह पूज्य होता है / / 3 / / [495] जो [साधक] संयमयात्रा के निर्वाह (या जीवन-यापन) के लिए सदा विशुद्ध सामुदायिक (तथा) अज्ञात (अपरिचित कुलों से) उञ्छ (भिक्षा) चर्या करता है, जो (आहारादि) न मिलने पर (मन में) विषाद नहीं करता और मिलने पर श्लाघा नहीं करता, वह पूजनीय [496] जो (साधु) संस्तारक (बिछौना), शय्या, आसन, भक्त (भोजन) और पानी का अतिलाभ होने पर भी (इनके विषय में) अल्प इच्छा रखने वाला है, इस प्रकार जो अपने आप को (थोड़े में हो) सन्तुष्ट रखता है तथा जो सन्तोष-प्रधान जीवन में रत है, वह पूज्य है / / 5 / / [467] मनुष्य (धन आदि के लाभ की) आशा से लोहे के (लोहमय) कांटों को उत्साहपूर्वक सहन कर सकता है किन्तु जो (किसी भौतिक लाभ की) आशा के बिना कानों में प्रविष्ट होने वाले तीक्ष्ण वचनमय कांटों को सहन कर लेता है, वही पूज्य होता है / / 6 / / पाठान्तर-*सायराणं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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