________________ नवम अध्ययन : विनय-समाधि] [349 महायश को पाकर सुखानुभव करते देखे जाते हैं, (3) सविनीत देव, यक्ष और गुह्यक भी ऋद्धि और यश को पाकर सुखानुभूति करते देखे जाते हैं / यहाँ देव शब्द ज्योतिष और वैमानिक देवों का वाचक है, यक्ष व्यन्तर देवों का और गुह्यक भवनपति देवों का वाचक है। ____ 'उववज्झा' प्रादि शब्दों के विशेषार्थ-उववज्झा : दो रूप, दो अर्थ--(१) उपवाह्य सवारी के काम में आने वाले वाहन-हाथी या घोड़ा, (2) औपवाह्य-राजा आदि के प्रिय कर्मचारियों की सवारी के काम में आने वाले / छाया विलिदिया : विगलिति दिया : दो अर्थ-(१) छाया-क्षतविक्षत, घायल, अथवा शोभाविकलित एवं इन्द्रियविकल, (2) इन्द्रियाँ विषयग्रहण में असमर्थ हों. अथवा नाक, हाथ, पैर आदि कटे हुए हों वे विकलितेन्द्रिय कहलाते हैं / 5 आभियोग्य----अभियोगीदास, ग्राभियोग्य–दासता / दास का कार्य केवल प्राज्ञापालन होता है / / लौकिकविनय की तरह लोकोत्तरविनय को अनिवार्यता 480. जे पायरिय-उवज्झायणं सुस्सूसा वयणकरा। तेसि सिक्खा पवढंति जलसित्ता इव पायवा // 12 // 481. अप्पणट्ठा परट्ठा वा सिप्पा उणियाणि य। गिहिणो उवभोगट्ठा इहलोगस्स कारणा // 13 // 482. जेण बंधं वहं घोरं परियावं च दारुणं / सिक्खमाणा नियच्छंति जुत्ता ते ललिइंदिया // 14 // 483. ते वि तं गुरु पूयंति तस्स सिप्पस्स कारणा। सकारंति नमसंत्ति तुट्ठा निद्देसवत्तिणो // 15 // 484. कि पुण जे सुयग्गाही अणंतहियकामए। पायरिया जं वए भिक्खू तम्हा ते नाइवत्तए // 16 // [480] जो साधक प्राचार्य और उपाध्याय की सेवा-शुश्रूषा करते हैं, उनके वचनों का पालन (प्राज्ञापालन) करते हैं, उनकी शिक्षा उसी प्रकार बढ़ती है, जिस प्रकार जल से (भलीभांति) सींचे हुए वृक्ष बढ़ते हैं / / 12 / / 4. (क) दसयालिय (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. 64 (ख) दशवै. (ग्रा. प्रात्मा.), पृ. 868 से 880 5. (क) "उपवाह्यानां राजादिवल्लभानामेते कर्मकरा, इत्यौपवाह्याः।" हारि, वत्ति, पत्र 248 (ख) छाया सोभा सा पूण सरूवता, सविसयगहणसामत्थं वा / छायातो विकलेंदियाणि जेसि ते / छाया विगले दिया विगलितेन्द्रियाः अपनीतनासिकादीन्द्रियाः / (ग) छाता:-कसघातम्रणांकितशरीराः। -हा. टी., पृ. 248 (व) अभियोगः प्राज्ञाप्रदानलक्षणोऽस्यास्तीति अभियोगी, तद्भावः पाभियोग्यं कर्मकरत्वमिर्थः / –दश. (मा. प्रात्मा.), पृ. 879 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org