________________ नवम अध्ययन : विनय-समाधि] [345 महान् प्राचार्यों की पाराधना कैसे करे ? इसके लिए गाथा में प्रयुक्त ये शब्द विशेष मननीय हैं-(१) पाराहए, (2) तोसइ, (3) सुच्चाण, सुभासियाई, सुस्सूसए, (4) अप्पमत्तो। इनका भावार्थ क्रमश: इस प्रकार है--(१) पूर्वगाथानों के विवेचन में कथित विनयभक्ति के सभी प्रकारों द्वारा अाराधना करे, (2) उन्हें अपने विनयव्यवहार से तथा ज्ञानादि की आराधना करके तुष्टप्रसन्न करे, (3) पूर्वगाथाओं में उक्त विनयधर्म के सुभाषितों को अथवा प्राचार्य के सुवचनों को अवधानपूर्वक सुन कर उनकी सेवा-शुश्रूषा करे, (4) निद्रादि प्रमादों को छोड़कर अप्रमत्तभाव से प्राचार्यश्री की आज्ञा का पालन करे / तीन फलश्रुति-प्राचार्यश्री की आराधना से तीन फल उपलब्ध होते हैं-(१) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान आदि अनेक सद्गुणों की आराधना होती है, (2) या तो उसी भव में सर्वोत्कृष्ट सिद्धिमुक्ति प्राप्त हो जाती है, (3) या अनुत्तरविमान तक पहुंचकर सुकुलादि में जन्म लेकर क्रमशः मोक्षप्राप्ति होती है। // नवम अध्ययन : विनय-समाधि : प्रथम उद्देशक समाप्त // 16. दशव. (प्राचार्य प्रात्मारामजी म.), पत्राकार पृ. 861 से 863 तक 17. वही, पत्राकार पृ. 861, 863 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org