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________________ अष्टम अध्ययन : आचार-प्रणिधि] से रक्षा करने में समर्थ होता है / 72 तीन योगों में निष्ठावान्--तफ्योग, संयमयोग, स्वाध्याययोग में निष्ठापूर्वक प्रवृत्त होने वाला ही स्वपररक्षा में समर्थ हो सकता है। . तपोयोग का अर्थ है-बारह प्रकार के तप में मनवचनकाया के योग से प्रवृत्त रहना / संयमयोग का अर्थ है--जीवकायसंयम, इन्द्रियसंयम, मन:संयम प्रादि 17 प्रकार के संयम के निरन्तर समाचरण और स्वाध्याय-योग का अर्थ है-वाचना आदि पांच अंगों वाले स्वाध्याय में रत रहना / एक प्रश्न : समाधान ---तप का ग्रहण करने से 12 प्रकार के तपों में स्वाध्याय का समावेश हो ही जाता है, फिर स्वाध्याय को पृथक् ग्रहण करने का क्या कारण है ? इसका समाधान अगस्त्यचूणि में इस प्रकार किया गया है-स्वाध्याय 12 प्रकार के तपों में मुख्य तप है, इस मान्यता को परिपुष्ट करने हेतु स्वाध्याय का पृथक् ग्रहण किया गया है / 3 / अहिए-अहिट्रिए : दो रूप, दो अर्थ-(१) अधिष्ठाता-निष्ठावान्, किन्तु 'अहिटए' का यहाँ क्रियापरकरूप 'अधिष्ठेत्' मानकर अर्थ किया है-प्रवृत्त (जुटा) रहता है / (2) अधिष्ठितनिष्ठापूर्वक स्थित हो जाता है / 74 समत्तमाउहे : समस्तायुध : अर्थ-समग्र अायुधों ( पंचविध शस्त्रास्त्रों ) से सुसज्जित / मलं-पापमल या कर्ममल / दुक्खसहे-शारीरिक-मानसिक दुःखों को सहने वाला, परीषविजेता। अममे अकिंचणे-अमम का अर्थ होता है--जिसके ममता-मेरापन नहीं होता, जबकि (क) दशय. (प्राचार्यश्री पात्मारामजी म.), पत्राकार, पृ. 825 (ख) 'जहा कोई पुरिसो चउरंगवलसमन्नागताए सेणाए अभिरुद्धो संपन्नाउहो अलं सूरो अ) सो अप्पाणं परं च ताग्रो संगामायो नित्थारेउ ति, अलं नाम समत्थो, तहा सो एवंगुणजुत्तो अल अप्पाणं परं च इंदिय कमायसेणाए अभिरुद्ध नित्थारेउ ति // ' जिन, चूणि, पृ. 293 (ग) अहवा अलं परेसि, परसद्दो एत्थ सत्तूसु वट्टति, अलं सद्दो विधारणे / सो अलं परेसि धारणसमत्थो सतूण। -अगस्यचूर्णि, पृ. 200 (क) सत्तरस विधं संजम जोगं / –अ. चू., पृ. 200 (ख) संयमयोग-पृथिव्यादिविषयं संयमव्यापारं / (ग) इह च तपोऽभिधानात् तद्ग्रहणेऽपि स्वाध्याययोगस्य प्राधान्यख्यापनार्थं भेदेनाऽभिधानम् / –हारि. वृत्ति, पत्र 238 (घ) बारसविहम्मि वि तवे, सब्भितरबाहिरे कुसलदिखें। न वि अत्यि, न वि अहोही, सज्झायसमं तवोकम्म / / -कल्प भाष्य, गा. 1169 74. (क) अधिष्ठाता-तपः प्रभृतीनां कर्ता / -हा. वृ., पत्र 238 (ख) दसवेयालियं (मु. नथ.) पृ. 682 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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