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________________ 328] [पशवकालिकसूत्र जन्ममरणरूप संसारपरिभ्रमण, आदि प्रात्मा के लिए अहित हैं तथा अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, स्वभावरमण आदि प्रात्मा के लिए हित हैं / जो अहितों से आत्मा को मुक्त करना और हितों में आत्मा को व्यापृत करना चाहता है, वही प्रात्मगवेषी है / 64 विसं तालउडं जहा-तालपुट विष का अर्थ है-ताल (हथेली) संपुटित (बंद) हो, उतने समय में जो विष भक्षणकर्ता को मार डाले ऐसा तत्काल प्राणनाशक विष / ' अंग-पच्चंग-संठाणं-अंग-प्रत्यंग-संस्थान-अंग (हाथ, पैर आदि शरीर के मुख्य अवयव), प्रत्यंग (अाँख, दांत आदि शरीर के गौण अवयव) और संस्थान (शरीर की प्राकृति, सौष्ठव, डीलडौल, सौन्दर्य या रूप) एवं अंग और प्रत्यंगों का संस्थान-विन्यासविशेष / पोग्गलाणं परिणाम--पुद्गलों का परिणमन-इन्द्रियों के पांचों विषय पुद्गलों के परिणाम हैं / परिणाम का अर्थ है- वर्तमान पर्याय को छोड़ कर दूसरी पर्याय में जाना—अवस्थान्तरित होना / शब्दादि इन्द्रिय-विषय मनोज्ञ और अमनोज्ञ दोनों रूप में परिवर्तित होते रहते हैं / जो आज मनोज्ञ या सुन्दर हैं, वे कालान्तर में अमनोज्ञ या असुन्दर हो सकते हैं, जो अमनोज्ञ या असुन्दर हैं. वे मनोज्ञ या सुन्दर या विशेष अमनोज्ञ हो सकते हैं। यही इनका अनित्य रूप है, जिसका चिन्तन करके ब्रह्मचारी को विषय के प्रति राग-द्वेष से दूर रहना चाहिए / प्रेम और राग एकार्थक हैं / 67 कामरागविवड्ढणं : तात्पर्य--स्त्रियों के अंग-प्रत्यंग, हावभाव, सौन्दर्य, चालढाल, अंगचेष्टा आदि को गौर से देखने से कामराग की वृद्धि होती है / 68 ___सीईभूएण अप्पणा : विशेषार्थ -शीतीभूत का अर्थ है---क्रोधादि अग्नि के शान्त हो जाने से उपशान्त 180 64. (क) 'अत्तगवेसिणा' आत्महितान्वेषणपरस्य / ' -हारि. व., पत्र 237 (ख) अपहितमवेसणेण अप्पा गविठ्ठो भवति / –अ. चु., पृ. 199 (ग) ......"अहवा मरणभयभीतस्स अत्तणो उवायगणवेसितेण अत्ता सुठ वा गवेसिणो, ज एएहितो अप्पाणं विमोएई। -जि. चूर्णि, पृ. 292 65. तालपुडं नाम जेणंतरेण ताला संपुडिज्जति तेणंतरेण मारयतीति तालपुडं / जहा जीवियाकखिणो न तालपुटविसभक्खणं सुहावहं भवति, तहा धम्मकामिणो नो विभूसाईणि सहावहाणि भवंतीत्ति / -जिन. चणि, पृ. 292 66. अगस्त्यचूणि, पृ. 292 67. (क) जि. ., 292-293 (ख) 'मंति वा रागोत्ति वा एगट्ठा / " 68. दश. (प्राचार्यश्री यात्मारामजी म.), पृ. 819 69. शीतीभूतेन क्रोधाद्यान्यपगमात प्रशान्तेन। - हारि. वत्ति, पत्र 238 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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