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________________ 308] [दशवकालिकसूत्र [416] सूर्य के अस्त हो जाने पर और (पुनः प्रातःकाल) पूर्व में सूर्य उदय न हो जाए तब तक सब प्रकार के पाहारादि पदार्थों (के सेवन) की मन से भी इच्छा न करे // 28 // विवेचन-रात्रिभोजन की मन में भी अभिलाषा न करे : प्राशय -चौथे अध्ययन में रात्रिभोजन विरमण को भगवान् ने छठा व्रत बताया है। इसलिए शास्त्रकार ने 'मणसा वि न पत्थए' कह कर इस व्रत का दृढ़ता से पालन करने का निर्देश किया है / क्योंकि रात्रिभोजनविरमण व्रत के भंग से अहिंसा महावत दूषित हो जाता है। एक महाव्रत के दूषित हो जाने से अन्य महाव्रतों के भी दूषित हो जाने की सम्भावना है। रात्रिभोजन का त्याग बौद्धधर्म तथा वैदिकधर्म के पुराण ( मार्कण्डेयपुराण आदि ) में बताया है। प्रारोग्य के नियम की दृष्टि से भी रात्रिभोजन वर्ण्य है। प्राहारमाइयं-पाहारादि सभी पदार्थ। 'प्रत्थंगयम्मि' आदि पदों का अर्थ-अस्त का अर्थ है--अदृश्य होना, छिप जाना / पुरत्थाएपुरस्तात्--पूर्व दिशा में अथवा प्रात:काल / 24 क्रोध लाभ-मान-मद-माया-प्रमादादि का निषेध 417. अतितिणे अचवले अप्पभासी मियासणे / हवेज्ज उयरे दंते, थोवं लधुन खिसए // 29 // 418. न बाहिरं परिभवे प्रत्ताणं न समुक्कसे / सुयलाभे न मज्जेज्जा, जच्चा तबसि बुद्धिए // 30 // 419. से जाणमजाणं वा कट्ट प्राहम्मियं पयं / संवरे खिप्पमप्पाणं बीयं तं न समायरे // 31 // 420. अणायारं परक्कम्म नेव गहे, न निण्हवे / सुई सया वियडभावे असंसते जिइंदिए // 32 // [417] (साधु आहार न मिलने या नीरस पाहार मिलने पर गुस्से में आकर) तनतनाहट (प्रलाप) न करे, चपलता न करे, अल्पभाषी, मितभोजी और उदर का दमन करने वाला हो / (आहारादि पदार्थ) थोड़ा पाकर (दाता की) निन्दा न करे // 26 // [418] साधु अपने से भिन्न किसी जीव का तिरस्कार न करे। अपना उत्कर्ष भी प्रकट न करे / श्रुत, लाभ, जाति, तपस्विता और बुद्धि से (उत्कृष्ट होने पर भी) मद न करे // 30 // 24. (क) दशवै. पत्राकार (माचार्यश्री प्रात्मारामजी म.) पृ. 772 (ख) 'अस्तंगत प्रादित्ये—अस्तपर्वतं प्राप्ते, प्रदर्शनीभूते वा / पुरस्ताच्चानुद्गते-प्रत्यूषस्यनुदिते।' हारि. वृत्ति, पत्र 232 (ग) पुरत्था य-पुवाए दिसाए। --अगस्त्यचूणि, पृ. 192 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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