________________ सप्तम अध्ययन : वाक्यशुद्धि] [277 रथ में जुत गया, वह / जुवंगवे-युवा बैल अर्थात्-चार वर्ष का बैल / संवहणे-संवहन---धुरा को वहन करने योग्य / अर्थात्-रथ को चलाने वाले बैल ! वृक्षों एवं वनस्पतियों के विषय में अवाच्य एवं वाच्य का निर्देश 357. तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य / रुक्खा महल्ल पेहाए, नेवं भासेज्ज पण्णवं / / 26 / / 358. प्रलं पासाय-खंभाणं * तोरणाण गिहाण य / फलिहऽग्गल-नावाणं अलं उदगदोणिणं / / 27 // 359. पोढए चंगबेरे नंगले मइयं सिया।। जंतलट्ठी व नाभी वा, गंडिया व अलं सिया // 28 / / 360. आसणं सयणं जाणं होज्जा वा किंचुवस्सए / भूगोवघाइणि भासं, नेवं भासेज्ज पण्णवं / / 29 / / 361. तहेव गंतुमुज्जाणं पत्वयाणि वणाणि य। रुक्खा महल्ल पेहाए एवं मासेज्ज पण्णवं // 30 // 362. जाइमंता इमे रुक्खा दीहा वट्टा महालया। पयायसाला विडिमा वए दरिसणित्ति य / / 31 / / 363. तहा फलाई पक्काई पायखज्जाई नो वए। वेलोइयाई टालाई वेहिमाई ति नो वए // 32 // 364. असंथडा इमे अंबा बहुनिव्वट्टिमा-फला+। वएज्ज बहुसंभूया भूयरूव त्ति वा पुणो // 33 // 365. तहेवोसहीओ पक्काओ, नोलियाओ छवीइय / लाइमा भज्जिमानो ति, पिहुखज्जत्ति नो वए // 34 // 19. (क) दशबै. (पत्राकार, प्राचार्यश्री प्रात्मारामजी. म.), पत्र 668, 671 -प्राचा. चूला, 4125 वृत्ति अगस्त्यचूणि, पृ. 170 हारि. वृत्ति, पत्र 217 प्राचा. चूला 4125 वृ. (ख) गोजोमगा रहा गोरहजोगत्तणेण गच्छंति गोरहगा'गोपोतलगा।""अ. चू., पृ. 170 'मोरगं ति त्रिहायणं बलीवर्दम् ।'-सूत्र कृ. 24 / 2 / 13 व. पाठान्तर-*तोरणाणि मिहाणि य। + बहु-निवडिडमा फला / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org