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________________ छठा अध्ययन : महाचारकथा] [259 'बोक्कतो' आदि कठिन शब्दों के अर्थ-वोक्कतो-व्युत्क्रान्त-उल्लंधित होता है। आयारोप्राचार : दो अर्थ-(१) कायक्लेशरूप बाह्यतप, अथवा अस्नानरूप मौलिक प्राचार (नियम)। जढो-त्यक्त-प्राणीरक्षारूप संयम को छोड़ दिया जाता है / घसासु-दो अर्थ -(1) शुषिर-पोली भूमि, (2) पुराने भूसे की राशि का वह प्रदेश, जिसके एक छोर को छूते या जिस पर रखतें ही सारा प्रदेश हिल जाए। भिलुगासु-यह देशी शब्द है। अर्थात् राजियों-लम्बी-लम्बी दरारों से युक्त भूमि / वियडेण-विकटेन-विकृतेन-प्रासुक जल या धोवन पानी से / उप्पिलावए-(१) उत्प्लावयतिउत्प्लावन करता है, डुबा देता है, या बहा देता है / अथवा उत्पीडयति-बहुत पीड़ित कर देता है / एण उसिणेण वा-ठंडे स्पर्श सुखकारी प्रासुक जल से अथवा उष्ण (गर्म) जल से / असिणाणहिटगा-अस्नान के नियम पर स्थिर रहने वाले / 50 शृगार एवं विभूषादि की दृष्टि से भी संयमी पुरुषों के लिए स्नान का निषेध किया गया है, यह बात अठारहवें आचारस्थान की गाथाओं से स्पष्ट है।" अठारहवाँ प्राचारस्थान : विभूषात्याग 326. सिणाणं अदुवा कक्कं लोद्ध पउमगाणि य / गायस्सुवट्टणट्ठाए नाऽयरंति कयाइ वि // 63 // 327. नगिणस्स वा वि मुंडस्स दीहरोम-नहंसिणो। मेहुणा उवसंतस्स किं विभूसाए कारियं // 64 // 328. विभूसावत्तियं भिक्खू कम्मं बंधइ चिक्कणं / संसार-सायरे घोरे जेणं पडइ दुरुत्तरे // 65 // 329. विभूसावत्तियं चेयं बुद्धा मन्नति तारिसं। सावज्जबहुलं चेयं, नेयं ताईहिं सेवियं // 66 // 50. (क) आचारो-- बाह्यतपोरूपः, संयमः-प्राणिरक्षणादिकः / -जन:-परित्यक्तो भवति / प्रासुकस्नानेन कथं संयमपरित्यागः ? इत्याह-संतिमे सुहमा० / -हारि. वृत्ति, पत्र 205 (ख) घसासु-शुषिरभूमिसु, भिलुगासु च-तथाविधभूमिराजीषु च / विकृतेन-प्रासुकोदकेन / -हारि. वृत्ति, पत्र 206 (ग) गसति-सुहुमसरीरजीवविसेसा इति घसि / अंतो सुण्णो भूमिपदेसो पुराणभूसातिरासी वा / अ. चूणि, पृ. 156 (घ) घसा नाम जत्थेकदेसे अक्कममाणे सो पदेसो सम्वो चलइ, सा घसा भण्णइ / --जि. चू., पृ. 231 51. (क) वियर्ड पाणयं भवइ / "..."जइ उप्पीलावणादि दोसा न भवंति तहावि अन्ने हायमाणस्स दोसा भवंति, कहं ? पहायमाणस्स बंभचेरे अगुत्ती भवति, असिणाणपच्चाइयो य कायकिलेसो तवो सोण हवइ, विभूसादोसो य भवति / " -जिन. चूर्णि, पृ. 232 (ख) दशवं. (संतवालजी) पृ. 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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