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________________ 210] [दशवकालिक सूत्र 222. अग्गलं फलिहं दारं, कवाडं वा वि संजए। अवलंबिया न चिट्ठज्जा गोयरग्गगओ मुणी // 6 // 223. समणं माहणं वा वि किविणं वा वणीमगं / उवसंकमंतं भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए // 10 // 224. तं अइक्कमित्तु न पविसे, न चिट्ठ चक्खुगोयरे / एगंतमवक्कमित्ता, तत्थ चिट्ठज्ज संजए // 11 // 225. वणीमगस्स वा तस्स दायगस्सुमयस्स वा। अपत्तियं सिया होज्जा लहुत्तं पश्यणस्स वा // 12 // 226. पडिसेहिए व दिन्ने वा, तो तम्मि नियत्तिए। उवसंकमज्ज भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए // 13 // [220] इसी प्रकार (गोचरी के लिये जाते हुए साधु को कहीं पर) भोजनार्थ एकत्रित हुए नाना प्रकार के (अथवा उच्च-नीचजातीय) प्राणी (दीखें तो) वह उनके सम्मुख न जाए, किन्तु यतनापूर्वक (वहाँ से बचकर) गमन करे, (ताकि उन प्राणियों को किसी प्रकार का त्रास न पहुँचे)।।७।। _[221] गोचरी के लिये गया हुमा संयमी साधु (या साध्वी) कहीं भी न बैठे और न खड़ा रह कर भी (धर्म-) कथा का (विस्तारपूर्वक) प्रबन्ध करे / / 8 / [222] गोचरी के लिए गया हुआ सम्यक् यतनावान् साधु अर्गला (पागल), परिघ (कपाट को ढांकने वाले फलक), द्वार (दरवाजा) एवं कपाट (किंवाड़) का सहारा लेकर खड़ा न रहे / / 6 / / [223-224] भोजन (भक्त) अथवा पानी के लिए (गृहस्थ के द्वार पर) आते हुए (या गये हुए) श्रमण (बौद्ध श्रमण), ब्राह्मण, कृपण अथवा वनीपक (भिखारी अथवा भिक्षाचर) को लांघ (या हटा) कर संयमी साधु (गृहस्थ के घर में) प्रवेश न करे और न (उस समय गृहस्वामी एवं श्रमण आदि की) आँखों के सामने खड़ा रहे / किन्तु एकान्त में ( एक ओर) जा कर वहाँ खड़ा हो जाए // 10-11 // [225] (उन भिक्षाचरों को लांघ कर या हटा कर घर में प्रवेश करने पर) उस वनीपक को या दाता (गृहस्वामी) को अथवा दोनों को (साधु के प्रति) अप्रीति उत्पन्न हो सकती है, अथवा प्रवचन (धर्म-शासन) की लघुता होती है / / 12 / / __ [226] (किन्तु गृहस्वामी द्वारा उन भिक्षाचरों को देने का) निषेध कर देने पर अथवा दे देने पर तथा वहाँ से उन याचकों के हट (या लौट) जाने पर संयमी साधु भोजन या पान के लिए (उस घर में) प्रवेश करे / / 13 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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