________________ पंचम अध्ययन : पिण्डषणा] [199 साधु-साध्वियों के प्राहार करने की सामान्य विधि 200. सिया य भिक्खु इच्छेज्जा, सेज्जमागम्म भोत्तुयं / सपिंडपायमागम्म उडुयं पडिलेहिया // 118 // 201. विणएण पविसित्ता सगासे गुरुणो मुणी। इरियावहियमायाय आगओ य पडिक्कम्मे / / 119 / / 202. आभोएत्ताण निस्सेसं अइयारं जहक्कम्म / गमणाऽऽगमणे चेव भत्तपाणे व संजए / / 120 // 203. उज्जुप्पण्णो अणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा। पालोए गुरुसगासे, जं जहा गहियं भवे // 121 // 204. न सम्ममालोइयं होज्जा, पुचि पच्छा व जं कडं / पुणो पडिक्कम्मे तस्स वोसट्ठो चितए इमं // 122 // 205. 'अहो ! जिणेहि असावज्जा वित्ती साहूण देसिया। मोक्ख-साहण-हेउस्स साहुदेहस्स धारणा // 123 // 206. नमोक्कारेण पारेता करेत्ता जिणसंथवं / समायं पटुवेत्ताणं वोसमेज्ज खणं मुणी // 124 // 207. वीसमंतो इमं चिते हियमट्ठ लाभमढिओ / जइ मे अणुग्गहं कुज्जा, साहू होज्जामि तारिभो // 12 // 208. साहवो तो चियत्तेणं निमंतेज्ज जहक्कम्मं / जइ तत्थ केइ इच्छज्जा, तेहिं सद्धि तु भुजए // 126 / / 209. अह कोइ न इच्छेज्जा, तओ भुजेज्ज एगओ। पालोए भायणे साहू, जयं अपरिसाडियं // 127 // 210. तित्तगं व कड़यं व कसायं, अंबिलं व महुरं लवणं वा / एय लद्वमन्नट्ठपउत्तं, महुघयं व भुजेज्ज संजए // 128 // 211. अरसं विरसं वा वि सूइयं वा प्रसूइयं / ओल्लं वा जइ वा सुक्कं, मंथु-कुम्मासभोयणं // 129 // 212. उप्पन्नं नाइहीलेज्जा अप्पं वा बहु फासुयं / मुहालद्ध' मुहाजीवी भुजेज्जा दोसवज्जियं // 130 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org