________________ 184] [वशवकालिकसूत्र उद्गम दोष-निवारण का उपाय 153. उग्गमं से य पुच्छेज्जा, कस्सऽट्ठा? केण वा कडं? / ___सोच्चा निस्संकियं सुद्ध पडिगाहेज्ज संजए / / 71 / / [153] संयमी साधु (पूर्वोक्त आहारादि के विषय में शंका होने पर) उस (शंकित आहार) का उद्गम पूछे कि यह किसके लिए (या किस लिये) बनाया है ? किसने बनाया है ? (दाता से प्रश्न का उत्तर) सुनकर निःशंकित और शुद्ध (एषणाशुद्ध जान कर) आहार ग्रहण करे / / 71 / / विवेचन--उद्गमपृच्छा करके शुद्ध पाहारग्रहण का विधान--पाहारग्रहण करते समय साधु को प्राहार के विषय में किसी प्रकार की अशुद्धि को शंका हो तो उस पाहार की उत्पत्ति के विषय में दाता से पूछे कि यह पाहार क्यों और किसलिए तैयार किया है ? अगर गृहस्वामी से पूर्णतया निर्णय न हो सके तो किसी अबोध बालक-बालिका प्रादि से पूछ कर स्पष्ट निर्णय कर ले, किन्तु शंकायुक्त आहार कदापि ग्रहण न करे / पूर्णतया नि:शंकित हो जाए और उक्त आहार एषणाशुद्ध हो तो ग्रहण करे / आहार के विषय में उद्गमदोष के निवारण का उपाय इस माथा में बताया गया है / 66 वनस्पति-जल-अग्नि पर निक्षिप्त आहारग्रहणनिषेध 154. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा / पुप्फेसु होज्ज उम्मीसं बीएसु हरिएसु वा // 72 // 155. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं / देतियं पडिप्राइक्खे न मे कप्पा तारिसं // 73 // 156. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। उदगम्मि होज्ज निक्खित्तं उत्तिग-पणगेसु वा // 74 / / 157. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं / देतियं पडिआइखे न मे कप्पइ तारिसं // 7 // 158. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। अगणिम्मि* होज्ज निक्खितं, तं च संघट्टिया दए // 76 // 159. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं / देतियं पडिमाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं // 77 // 160. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा।। अगणिम्मि होज्ज निक्खितं, तं च उस्सपिकया दए // 78 // 68. दशर्वकालिकसूत्रम् (प्राचार्य श्री प्रात्मारामजी म.) पृ. 198 पाठान्तर-* तेउम्मि हुज्ज। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org