________________ 168] [दशवकालिक सूत्र सामने ही मल-मूत्र पड़ा दिखाई दे अथवा वह स्नानगृह या शौचालय से साधु को देख सके, उस भूमि भाग में मुनि खड़ा न हो / तीसरा निषेध है-जंगल या खान से लाई हुई सचित्त मिट्टी और सचित्त पानी जिस मार्ग से लाया जाता हो, उस मार्ग पर खड़ा न हो / तथा चौथा निषेध है जहाँ चारों ओर बीच या हरी वनस्पति बिखरी हुई हो, या पैरों के नीचे रौंदी जाने की संभावना हो ऐसी जगह भी मुनि खड़ा न हो, क्योंकि इन दोनों प्रकार के स्थानों में खड़े रहने से अहिंसाव्रत की विराधना होगी।४२ ग्रहणषणा-विधि आहार-ग्रहण-विधि-निषेध 109. तत्थ से चिट्ठमाणस्स आहरे पाण-भोयणं / अकप्पियं न गेण्हेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पियं / / 27 / / 110. आरती सिया तत्थ परिसाडेज्ज भोयणं / देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं // 28 // 111. सम्मदपाणी पाणाणि बीयाणि हरियाणि य / असंजमार नच्चा, तारिसं परिवज्जए // 29 // 112. साहुटु निक्खिवित्ताणं सच्चित्तं घट्टियाण य / तहेब समणट्ठाए उदगं संपणोल्लिया // 30 // 113. प्रोगाहइत्ता चलइत्ता आहरे पाण-भोयणं / देतियं पडियाइक्खे, न मे कम्पइ तारिसं // 31 // 114. पुरेकम्मेण हत्थेण दच्चोए भायणेण वा। देतियं पडियाइक्खे, न मे कम्पइ तारिसं // 32 // 115. *उदओल्लेण हत्येण दवीए भायणेण वा। देतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पई तारिसं // 33 // 116. ससिणिद्धण हत्थेण दवीए भायणेण वा। देतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 34 // 42. (क) 'वच्चं नाम जत्थ वोसिरंति कातिकाइसन्नायो।' -जि. च., पृ. 177 (ख) 'वच्चं अमेझ त जत्थ / ' -जि. चु., 177 / (ग) 'संलोगो-जत्थ एताणि आलोइज्जति, तं परिवज्जए / ' (घ) सिणाण लोगं वच्चसंलोगं / संलोग-जत्थ ठिएण हि दीसंति ते वा तं पासंति। -जि. च., पृ. 177 (ङ) अ. चू., पृ. 107, (च) जि. चू., पृ. 177, (छ) हारि, वृत्ति, पत्र 168 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org