________________ आकलन हया उस युग की शब्दावली में जो अर्थ मन्निहित था, अाज उन शब्दों का वही अर्थ हो, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। शब्दों के मूल अर्थ में भी कालक्रमानुसार परिवर्तन हुए हैं। इसलिए मूल आगम में प्रयुक्त शब्दों का सही अर्थ क्या है ? इमका निर्णय करना कठिन होता है, अतः इस कार्य में समय लगना स्वाभाविक था। तथापि परम श्रद्धय सद्गुरुवयं राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनि जी महाराज तथा भाई महाराज श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री के मार्गदर्शन से यह दुरूह कार्य सहज सुगम हो गया। यदि पूज्य गुरुदेवश्री का हार्दिक आशीर्वाद और देवेन्द्र मुनि जी का मार्गदर्शन प्राप्त नहीं होता तो सम्पादन कार्य में निखार नहीं पाता। उनका चिन्तन और प्रोत्माहन मेरे लिए संबल के रूप में रहा है। मैं इस अवसर पर त्याग-वैराग्य की जीती-जागती प्रतिमा म्वर्गीया वाल ब्रह्मचारिणी परम-विदुषी चन्दनबाला श्रमणीसंघ की पूज्य प्रबतिनी महासती श्री मोहनकुवर जी म. को विस्मत नहीं कर सकती, जिनकी अपार कृपादृष्टि से ही मैं संयम-साधना के महामार्ग पर बढ़ी और उनके चरणारविन्दों में रहकर पागम, दर्शन, न्याय, व्याकरण का अध्ययन कर सकी। आज मैं जो कुछ भी हूँ, वह उन्हीं का पुण्य-प्रताप है। प्रस्तुत आगम के सम्पादन, विवेचन एवं लेखन में पूजनीया माताजी महाराज का मार्गदर्शन मुझे मिला है। प्रेस योग्य पाण्डुलिपि को तैयार करने में पण्डितप्रवर मुनि श्री नेमिचन्द्र जी ने जो सहयोग दिया है वह भी चिरस्मरणीय रहेगा। श्री रमेशमुनि, श्री राजेन्द्रमुनि, श्री दिनेशमुनि प्रभृति मुनि-मण्डल की सत्प्रेरणा इस कार्य को शीघ्र सम्पन्न करने के लिए मिलती रही तथा सेवामूति महासती चतरकुवर जी की सतत सेवा भी भुलाई नहीं जा सकती, सुशिष्या महासती चन्द्रावती, महासती प्रियदर्शना, महासती किरणप्रभा, महासती रत्नज्योति, महासती सुप्रभा आदि की सेवा-शुश्र षा इस कार्य को सम्पन्न करने में सहायक रही है। ज्ञात और अज्ञात रूप में जिन महानुभावों का और ग्रन्थों का मुझे सहयोग मिला है, उन सभी के प्रति मैं विनम्र भाव से आभार व्यक्त करती हूं। —जैन साध्वी पुष्पवती महावीर भवन, मदनगंज-किशनगढ़ दि. 4-5-84 [17] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org