________________ तृतीय अध्ययन : क्षुल्लिकाचार-कथा] [75 तात्पर्य यह है कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तपश्चरणरूप सिद्धिमार्ग पर आरूढ़ निर्ग्रन्थ श्रमण की आत्मा संयम और तप की साधना से क्रमशः सर्वथा विशुद्ध-सर्वकर्म निर्मुक्त हो जाती है। परिनिव्वुडा-परिनिर्वत्त होते हैं-जन्म, जरा, मरण, रोग आदि से सर्वथा मुक्त होते हैं, भवधारण करने में सहायक अघाति और घाति सर्वकर्मों का सब प्रकार से क्षय करके जन्ममरणादि से रहित हो जाते हैं, सर्वथा निर्वाण (सिद्धि-मुक्ति) को प्राप्त होते हैं / काचारकथा अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org