________________ तइयं अज्झयणं : तृतीय अध्ययन खुड्डियायारकहा : क्षुल्लिकाचार-कथा प्राथमिक * दशवैकालिक सूत्र का यह तीसरा अध्ययन है / इसका नाम 'क्षुल्लिकाचारकथा' अथवा 'क्षुल्लका चारकथा' है। इस अध्ययन में अनाचीर्णों (साधु के लिए अनाचरणीय विषयों) का निषेध करके प्राचार (साध्वाचार अथवा साधुवर्ग के लिए आचरणीय) का प्रतिपादन किया गया है / इसलिए इसका नाम आचार-कथा है / इसी शास्त्र के छठ प्रध्ययन--'महाचारकथा' में वणित विस्तृत प्राचार की अपेक्षा इस अध्ययन में प्राचार का संक्षिप्त निरूपण है। इसलिए इसका नाम 'क्षुल्लिकाचारकथा' अथवा 'क्षुल्लकाचारकथा' रखा गया है / 'क्षुल्लिक' शब्द का अर्थ-क्षुद्र-छोटा या अल्प है। अल्प 'महान्' की अपेक्षा रखता है। इसी कारण 'महाचार' की अपेक्षा अल्प या छोटा होने के कारण इसका नाम 'क्षुल्लकाचारकथा' पड़ा। एक प्रकार से यह साधुसंस्था की आचारसंहिता है।' भारतीय संस्कृति में प्राचार का बहुत अधिक महत्त्व है। चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, माण्डलिक या राजा-महाराजा, धनाढ्य अथवा मंत्री आदि जब भी त्यागी या साधु-संन्यासीवर्ग के चरणों में दर्शन-वन्दन या उपासना के लिए पहुँचता था, तो सर्वप्रथम उनके प्राचार-विचार की पृच्छा करता था,-'कहं मे आयार-गोयरो'२ यह वाक्य इस का प्रमाण है। इसीलिए 'आचारः प्रथमो धर्म:' कह कर प्राचार को पहला धर्म माना, क्योंकि धर्म का कोरा ज्ञान कर लेना या ज्ञान बघार देना ही पर्याप्त नहीं, प्राचार ही कर्ममुक्ति का मार्ग है। इसीलिए आचारांगसूत्र के नियुक्तिकार ने कहा-समस्त तीर्थकर तीर्थप्रवर्तन के प्रारम्भ में सर्वप्रथम 'प्राचार' का ही उपदेश करते हैं। क्योंकि प्राचार ही परम और चरम कल्याण का साधकतम हेतु माना गया है / अंगों (द्वादशांगी या सकल वाङमय) का सार एवं आधार प्राचार है, प्राचार ही मोक्ष का प्रधान हेतु है।" 1. एएसि महताणं पडिबक्खे खड्डया होंति / ----नियुक्ति गा.१७८ 2. 'रायाणो रायमच्चा य कहं भे पायारगोयरो ?' दशव. अ. 6 गा. 2 3. 'सन्वेसि पायारो तित्थस्स पवत्तणे पढमयाए।' --नियुक्ति गाथा 4. 'प्राचारशास्त्रं सुविनिश्चितं यथा / जगाद वीरो जगतो हिताय // ' -शीलांकाचार्य प्राचा. वत्ति 5. अंगाणं कि सारो ? पायारो। ....प्राचा. नियुक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org