________________ 26] [दशवकालिकसूत्र * काम और श्रामण्य दोनों में कैसे टक्कर होती है ? और कामनिवारण का उपाय धैर्यपूर्वक न करने पर बड़े से बड़ा साधक भी काम के प्रागे कैसे पराजित हो जाता है ? इस तथ्य को भलीभांति समझाने के लिए शास्त्रकार ने कामपराजित रथनेमि और श्रामण्य पर सुदृढ़ राजीमती का ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत किया है / राजीमती का प्रसंग इस प्रकार है-भगवान् अरिष्टनेमि ने उत्कट वैराग्यपूर्वक एक हजार साधकों के साथ भागवती दीक्षा अंगीकार कर ली। बाद में राजीमती ने भी प्रबल वैराग्यपूर्वक सात सौ सहचरियों के साथ प्रव्रज्या अंगीकार की। एक बार रैवतक पर्वत पर विराजमान भ. नेमिनाथ को वन्दना करने साध्वी राजीमती जा रही थीं। मार्ग में बहुत तेज वृष्टि हो जाने से उनके सारे वस्त्र भीग गए / एक गुफा को निरापद एवं एकान्त निर्जन स्थान समझ कर वे वहाँ अपने सब वस्त्र उतार कर सुखाने लगीं। उसी गुफा में ध्यानस्थ रहे हुए रथनेमि (नेमिनाथ भगवान् के छोटे भाई) की दृष्टि राजीमती के रूपयौवनसम्पन्न शरीर पर पड़ी / उनकी कामवासना भड़क उठी / उन्हें अपने श्रमणत्व का भान नहीं रहा / वह साध्वी राजीमती से कामभोग की प्रार्थना करने लगे। इस पर राजीमती एकदम चौंक कर संभल गई। उसने अपने शरीर पर वस्त्र लपेटे और रथनेमि को जो वचन कहे और उन्हें सुनकर वे पुनः प्रात्मस्थ एवं संयम में सुस्थिर हुए। राजीमती ने रथनेमि को जो प्रबल प्रेरक उपदेश दिया, वह गाथा 6 से 6 तक चार गाथाओं में वर्णित है। उत्तराध्ययन सूत्र के 22 वें अध्ययन में विस्तार से अंकित है / * उपसंहार में कहा गया है कि साधकों को भी मोहोदयवश संयम से विचलित होने का प्रसंग आने पर इसी प्रकार अपने ऊपर अंकुश लगाकर श्रमणत्व में स्थिर हो जाना चाहिए। + देखिये, उत्तराध्ययन सूत्र का 22 वाँ अध्ययन / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org