________________ 40 [आवश्यक सूत्र छन्बोसाए दसाकप्यववहाराणं उद्देसणकालेहि, सत्तावीसाए अणगारगुहि अट्ठावीसाए आयारप्पकप्पेहि / एगणतीसाए पावसुयप्पसंगेहि, तीसाए महामोहणीयट्ठाणेहि, एगतीसाए सिद्धाइगुणेहि, बत्तीसाए जोग-संगहेहि, तेत्तीसाए आसायणाहि 1. अरिहंताणं आसायणाए, 2. सिद्धाणं आसायणाए, 3. आयरियाणं आसायणाए, 4. उवझायाणं प्रासायणाए, 5. साहणं आसायणाए, 6. साहणीणं आसायणाए, 7. सावयाणं प्रासायणाए, 8. सावियाणं आसायणाए, 6. देवाणं आसायणाए, 10. देवीणं आसायणाए, 11. इह लोगस्स आसायणाए, 12. परलोगस्स प्रासायणाए, 13. केवलि-पन्नत्तस्स धम्मस्स आसायणाए, 14. सदेव-मणुयासुरस्स लोगस्स आसायणाए, 15. सव्वपाण-भूय-जीव-सत्ताणं अासायणाए, 16. कालस्स प्रासायणाए, 17. सुअस्स आसायणाए, 18. सुयदेवयाए आसायणाए, 19. वायणायरियस्स आसायणाए, जं 20. वाइद्ध, 21. वच्चामेलियं, 22. होणक्खरं, 23. अच्चक्खरं 24. पयहीणं, 25. विणयहीणं, 26. जोग-हीणं, 27. घोसहीणं, सुट्ठदिन्नं, 26. दुठ्ठपडिच्छियं, 30. अकाले कओ सज्झाओ, 31. काले न को सज्झाओ, 32. असज्झाइए सज्झाइयं, 33. सज्झाए न सज्झाइयं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / भावार्ण-प्रतिक्रमण करता हूँ सात भय के स्थानों अर्थात् कारणों से, आठ मद के स्थानों से, नौ ब्रह्मचर्य की गुप्तियों से अर्थात् उनका सम्यक् पालन न करने से, दसविध क्षमा आदि श्रमण धर्म की विराधना से, ग्यारह उपासक प्रतिमा-श्रावक की प्रतिज्ञाओं से अर्थात उनकी अश्रद्धा तथा विपरीत प्ररूपणा से, बारह भिक्षु की प्रतिमाओं से--उनकी अश्रद्धा अथवा विपरीत प्ररूपणा से, तेरह क्रिया के स्थानों के सेवन से, चौदह जीवों के समूह से अर्थात् उनकी हिंसा से, पन्द्रह परमाधार्मिकों से अर्थात् उन जैसा भाव रखने या आचरण करने से, सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के गाथा अध्ययन सहित सोलह अध्ययनों से, सत्तरह प्रकार के असंयम में रहने से, अठारह प्रकार के अब्रह्मचर्य में वर्तने से, ज्ञातासूत्र के उन्नीस अध्ययनों से अर्थात् उनकी विपरीत श्रद्धा प्ररूपणा करने से, बीस असमाधि के स्थानों से, इक्कीस शबलों से, बाईस परिषहों से अर्थात् उनको सहन न करने से, सूत्रकृतांग सूत्र के तेईस अध्ययनों से अर्थात् तदनुसार आचरण न करने से या विपरीत श्रद्धा-प्ररूपणा करने से, चौवीस देवों से अर्थात् उनकी अवहेलना करने से, पांच महाव्रतों की पच्चीम भावनाओं (का यथावत् पालन न करने) से, दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प अोर व्यवहार-उक्त सूत्रत्रयी के छब्बीस उद्देशन कालों से. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org