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________________ 38] [आवश्यक सूत्र तीन प्रकार की विराधनाओं से होने वाले दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ। वे इस प्रकार हैं 1. ज्ञान की तथा ज्ञानी की निंदा करना, ज्ञानार्जन में आलस्य करना, अकाल स्वाध्याय करना आदि ज्ञानविराधना है। 2. सम्यक्त्व एवं सम्यक्त्वधारी साधक की विराधना करना दर्शनविराधना है। 3. अहिंसा सत्य आदि चारित्र का सम्यक् पालन न करना, उसमें दोष लगाना चारित्रविराधना है। पडिक्कमामि चहिं कसाएहि- कोहकसाएणं, माणकसाएणं, मायाकसाएणं, लोभकसाएणं। पडिक्कमामि चाहिं सन्नाहिं—आहारसनाए, भयसन्नाए, मेहुण-सन्नाए, परिग्गह-सनाए। पडिक्कमामि चहि विकहाहि-इत्थी-कहाए, भत्त-कहाए, देसकहाए, रायकहाए। पडिक्कमामि चहि झाणेह-अट्टेणं झाणेणं, रुद्देणं झाणेणं, धम्मेणं झाणेणं, सुक्केणं झाणणं। भावार्थ-कषायसूत्र-चार-कषायों के द्वारा होने वाले अतिचारों का प्रतिक्रमण करता हूँ। चार कषाय-क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय / संज्ञासूत्र-चार प्रकार की संज्ञाओं के द्वारा जो अतिचार-दोष लगा, उसका प्रतिक्रमण करता हूं। चार संज्ञाएँ-आहार-संज्ञा, भय-संज्ञा, मैथुन-संज्ञा और परिग्रह-संज्ञा / विकथा-सूत्र--स्त्री-कथा, भक्त-कथा, देश-कथा और राज-कथा, इन चार विकथाओं के द्वारा जो भी अतिचार लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ। ध्यान-सूत्र-प्रार्तध्यान तथा रौद्रध्यान के करने से तथा धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान के न करने से जो भी अतिचार लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ। पडिक्कमामि पंचहि किरियाहिं—काइयाए, अहिगरणियाए, पाउसियाए, पारितावणियाए, पाणाइवायर्याकरियाए। पडिक्कमामि पंचहि कामगुहि-सद्देणं, रूवेणं, गंधेणं, रसेणं, फासेणं / पडिक्कमामि पंचहिं महन्वहि-सव्वाश्रो पाणाइवायानो वेरमणं, सम्वानो मुसावायानो वेरमणं, सवाओ अदिनादाणाप्रो बेरमणं, सव्वानो मेहुणाओ वेरमणं, सव्वानो परिग्गहाओ वेरमणं। पडिक्कमामि पंचहि समिईहि-इरियासमिईए, भासा-समिईए, एसणा-समिईए, प्रायाणभंडमत्तनिवखेवणासमिईए, उच्चार-पासवण-खेल-जल्ल-सिंघाण-परिट्ठावणियासमिईए। भावार्थ-किया-सूत्र-कायिकी, प्राधिकरणिकी, प्राषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी, इन पांचों क्रियाओं के करने से जो भी अतिचार लगा हो उनका प्रतिक्रमण करता हूँ। ____ काम-गुण-सूत्र-शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन पांचों कामगुणों के द्वारा जो भी अतिचार लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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