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________________ साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका के लिए सायंकाल और प्रातःकाल कर्मों की निर्जरा करने लिए प्रतिक्रमण परम अनिवार्य है / आवश्यकसूत्र के छह अध्ययन हैं-(१) सामायिक (2) चतुर्विशतिस्तव (3) वंदना (4) प्रतिक्रमण (5) कायोत्सर्ग (6) प्रत्याख्यान / 1. सामायिक सामायिक को साधना के विषय में महामहिम गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से प्रश्न किया कि-- प्र०-सामाइएणं भंते ! जीवे कि जणयह ? उ०—सामाइएणं सावज्जजोगविरई जणयइ / ' जीवन को स्पर्श करने वाला कितना मार्मिक प्रश्नोत्तर है। जिस प्रात्मा ने समता के अमृतबिन्दु का पान किया है, वह कौन-सा प्रानन्द प्राप्त करता है ? प्रश्न जरा गंभीर लगता है, किन्तु उत्तर में उससे भी अधिक गंभीरता है। हे गौतम ! सामायिक द्वारा प्रात्मा सावद्ययोग की प्रवृत्ति से विरक्त होती है। प्रात्मा की वृत्ति चिरकाल से अशुभ की तरफ दौड़ रही है। सामायिक की साधना प्रात्मा को अशुभ वृत्ति से हटाकर शुभ में जोड़ती है और शुभ से शुद्धि की ओर ले जाती है। जिस प्रकार व्यक्ति पशुओं को जब कीले से बांध देता है, तब उसके भाग जाने का भय नहीं रहता, उसी प्रकार समभाव के साधक अशुभ वृत्ति को सामायिक से बांध देते हैं, फिर विकार की तरफ जाने का भय नहीं रहता है। सामायिक का अर्थ सिर्फ शारीरिक क्रिया को रोकना ही नहीं, अपितु अशुभ मानसिक क्रिया को भी रोकना है। सामायिक की मुख्य आधारभूमि मन ही है। जब तक मन में सामायिक नहीं पाती, जब तक तन की सामायिक का विशेष महत्व नहीं है / राजर्षि प्रसन्नचन्द्र का शरीर तो सामायिक में था लेकिन मन किन्हीं और ही विषम भावों से गुथा हुआ था। तन समभाव में था किन्तु मन संहार में प्रवृत्त था। मन की अस्थिरता के योग ने उनको सातवें नरक तक के योग्य बन्धन में बांध लिया, परन्तु जैसे ही तन के साथ मन भी समभाव में प्रवृत्त बना कि सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके कैवल्य को भी प्राप्त कर लिया। 2. चतुर्विशति-स्तव आवश्यकसूत्र का दूसरा अध्ययन है चतुर्विंशतिस्तव / आलोचना के क्षेत्र में पहुंचने से पूर्व क्षेत्रशुद्धि होना आवश्यक है / साधक प्रथम समभाव में स्थिर बने फिर गुमाधिक महापुरुषों की स्तुति करे / महापुरुषों का गुणकीर्तन प्रत्येक साधक के लिए प्रेरणा का स्रोत है। मानव-मन जबतक वर्तमान चौवीसी में, जो आध्यात्मिक जीवन के चौवीस सर्वोत्तम कलाकार हो गये हैं, उनका शरण नहीं लेगा तब तक आध्यात्मिक कला सीख नहीं सकेगा। इस विषय में गणधर गौतम श्रमण भगवान् महावीर से प्रश्न करते हैं प्र०--चउव्वीसत्थएणं भंते ! जीवे कि जणयह? उ.---चउव्वीसस्थएणं दसणविसोहि अणयह॥ 1. उत्तराध्ययन, अ. 29 सूत्र 9 2. उत्तराध्ययन सूत्र न. 29 सूत्र 10 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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