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________________ दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प और व्यवहार, ये तीनों पागम चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहुस्वामी के द्वारा प्रत्याख्यानपूर्व से नियूंढ हैं।' दशाश्रुतस्कन्ध की नियुक्ति के मन्तव्यानुसार वर्तमान में उपलब्ध दशाश्रुतस्कंध अंगप्रविष्ट आगमों में जो दशाएं प्राप्त हैं, उनसे लघु हैं। इनका नियूहण शिष्यों के अनुग्रहार्थ स्थविरों ने किया था। चूर्णि के अनुसार स्थविर का नाम भद्रबाहु है। ___ उत्तराध्ययन का दूसरा अध्ययन भी अंग-प्रभव माना जाता है / नियुक्तिकार भद्रबाहु के मतानुसार वह कर्मप्रवादपूर्व के सत्रहवें प्राभृत से उद्धृत है। इनके अतिरिक्त आगमेतर साहित्य में विशेषतः कर्मसाहित्य का बहुत-सा भाग पूर्वोद्धृत माना जाता है। नियू हित कृतियों के सम्बन्ध में यह स्पष्टीकरण करना आवश्यक है कि उसके अर्थ के प्ररूपक तीर्थंकर हैं, सूत्र के रचयिता गणधर हैं और जो संक्षेप में उसका वर्तमान रूप उपलब्ध है उसके कर्ता वही हैं जिन पर जिनका नाम अंकित या प्रसिद्ध है। जैसे दशवकालिक के शय्यंभव; कल्प, व्यवहार, निशीथ और दशाश्रुतस्कंध के रचयिता भद्रबाहु हैं। जैन अंग-साहित्य की संख्या के सम्बन्ध में श्वेताम्बर और दिगम्बर सभी एकमत हैं। सभी अंगों को बारह स्वीकार करते हैं। परन्तु अंगबाह्य आगमों की संख्या के सम्बन्ध में यह बात नहीं है, उनके विभिन्न मत है / यही कारण है कि आगमों की संख्या कितने ही 84 मानते हैं, कोई-कोई 45 मानते हैं और कितने ही 32 मानते हैं / नन्दीसूत्र में आगमों की जो सूची दी गई है, वे सभी आगम वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज मूल प्रागमों के साथ कुछ नियुक्तियों को मिलाकर 45 आगम मानता है और कोई 84 मानते हैं। स्थानकवासी और तेरापंथी परम्परा बत्तीस को ही प्रमाणभूत मानती है। दिगम्बर समाज की मान्यता है कि सभी प्रागम विच्छिन्न हो गये हैं। 1. वंदामि भद्दबाहुं, पाईणं चरिय सयलसुयणाणि / सो सुत्तस्स कारगमिसं (णं) दसासु कप्पे य ववहारे / --दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति गा.१, पत्र 1 2. डहरीओ उ इमानो, अज्झयणेसु महईओ अंगेसु / छसु नायादीएसु, वत्थविभूसावसाणमिव // डहरीयो उ इमाओ, निज्जूढायो अणुग्गहट्टाए। थरेहिं तु दसानो, जो दसा जाणओ जीवो / —दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति 5-6 दशाश्रुतस्कंधचूणि / कम्पप्पवायपुब्वे सत्तरसे पाहुडंमि जं सुत्तं / सणयं सोदाहरणं तं चेव इहंपि गायब्वं / / -उत्तराध्ययननियूक्ति गा.६९ 5. (क) तत्त्वार्थसूत्र 1-20, श्रुतसागरीय वृत्ति। (ख) षट्खण्डागम (धवला टीका) खण्ड 1, पृ. 6 बारह अंगविज्झा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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