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________________ (2) ईर्यासमिति और परिष्ठापनिकासमिति के संयुक्त विधि-निषेधकल्प---११. विचारभूमिविहारभूमिसूत्र / (3) भाषा-समिति के विधि-निषेधकल्प-१२. वचनसूत्र, 13. प्रस्तारसूत्र, 14. अन्तरगृहस्थानादिसूत्र, (4) एषणासमिति के विधि-निषेधकल्प [आहारषणा] -- 15. प्रलम्बसूत्र, 16. रात्रि भक्तसूत्र, 17. संखतिसूत्र, 18. सागारिक-पारिहारिकसूत्र, 19. आहुतिका-निहति कासूत्र, 20. अंशिकासूत्र, २१.कालक्षेत्रातिक्रान्तसूत्र, 22. कल्पस्थिताकल्पस्थितसूत्र, 23. संस्तृत-निविचिकित्ससूत्र, 24. उद्गारसूत्र, 25. ग्राहारविधिसूत्र, 26. परिवासितसूत्र, 27. पुलाकभक्तसूत्र, 28. क्षेत्रावग्रहप्रमाणसूत्र, 29. रोधक (सेना) सूत्र (पाणषणा) 30. पानकविधिसूत्र, 31. अनेषणीयसूत्र, 32. मोकसूत्र, (वस्त्रंषणा) 33. चिलिमिलिका सूत्र 34. रात्रिवस्त्रादिग्रहणसत्र, 35. हताहतासूत्र, 36, उपधिसूत्र, 37. वस्त्रसुत्र, 38. निश्रासूत्र, 39. त्रिकृत्स्नचतुःकृत्स्नसूत्र, 40. समवसरणसूत्र, 41. यथारत्नाधिक वस्त्रपरिभाजकसूत्र, (वस्त्र-पाषणा) 42. प्रवग्रहसूत्र, (पाषणा) 43. घटीमात्रक सूत्र , (रजोहरणैषणा) 44. रजोहरणसूत्र, (चमैषणा) 45. चर्मसूत्र, (शय्या-संस्तारकेषणा) 46. शय्या-संस्तारकसूत्र, 47. यथारत्नाधिक शय्या-संस्तारक-परिभाजनसूत्र, (स्थानेषणा) 48. अवग्रहसूत्र, (उपाश्रयैषणा) 49. आपणगृह-रथ्यामुखसूत्र, 50. चित्रकर्मसूत्र, 51. सागारिक निधासूत्र, 52. सागारिक उपाश्रयसूत्र, 53. प्रतिबद्ध शय्यासूत्र, 54. गाथापतिकुलमध्यवाससूत्र, 55. उपाश्रयसूत्र, 56. उपाश्रयविधिसूत्र, (वसतिनिवास) 57. मासकल्पसूत्र, 58. वगडासूत्र, महावतों के अनधिकारी 59. प्रव्राजनासूत्र (महाव्रत प्ररूपण) 60. महावतसूत्र, प्रथम महावत के विधिनिषेधकल्प 61. अधिकरणसूत्र, 62. व्यवशमनसूत्र, प्रथम और तृतीय महावत के विधिनिषेधकल्प 63. आवस्थाप्पसूत्र, प्रथम-चतुर्थ महावत के विधिनिषेधकल्प 64. दकतीरसूत्र, 65. अनुद्घातिकसूत्र, चतुर्थमहावत के विधिनिषेधकल्प 66. उपाश्रय-प्रवेशसूत्र, 67. अपावृतद्वार उपाश्रयसूत्र, 68. अवग्रहानन्तक-प्रवग्रहपट्टकसूत्र, 69. ब्रह्मापायसूत्र, 70. ब्रह्मरक्षासूत्र, 71. पाराञ्चिकसुत्र, 72. कण्टकादि-उद्धरणसूत्र, 73. दुर्गसूत्र, 74. क्षिप्तचित्तादिसूत्र, तपकल्प' 75. कृतिकर्मसूत्र 76. ग्लानसूत्र, 77. पारिहारिकसूत्र 78. व्यवहारसूत्र, मरणोत्तरविधि 79. विश्वम्भवनसूत्र, महावत और समिति के संयुक्तकल्प 80. परिमन्थसत्र इस वर्गीकरण से प्रत्येक विज्ञपाठक इस आगम की उपादेयता समझ सकते हैं। श्रामण्य जीवन के लिए ये विधि-निषेधकल्प कितने महत्त्वपूर्ण हैं। इनके स्वाध्याय एवं चिन्तन-मनन से ही पंचाचार का यथार्थ पालन सम्भव है। यह पागमज्ञों का अभिमत है तथा इन विधि-निषेधकल्पों के ज्ञाता ही कल्प विपरीत पाचरण के निवारण करने में समर्थ हो सकेंगे, यह स्वतः सिद्ध है। (3) व्यवहारसूत्र प्रस्तुत व्यवहारसूत्र तृतीय छेदसूत्र है / इसके दस उद्देशक हैं। दसवें उद्देशक के अंतिम (पांचवें) सूत्र में पांच व्यवहारों के नाम है / इस सूत्र का नामकरण भी पाँच व्यवहारों को प्रमुख मानकर ही किया गया है। 1. उपाश्रय विधि-निषेध-कल्प के जितने सूत्र हैं वे प्रायः चतुर्थ महावत के विधि-निषेध-कल्प भी हैं। 2. विनय यावत्य और प्रायश्चित्त प्रादि ग्राभ्यन्तर तपों का विधान करने वाले ये सत्र हैं। 3. प्रथम छेदसूत्र दशा, (आयारदशा दशाश्रुतस्कन्ध), द्वितीय छेदसूत्र कल्प (बृहत्कल्प) और तृतीय छेदसूत्र व्यवहार / देखिए सम० 26 सूत्र--२ / अथवा उत्त० अ० 31, गा० 17 / भाष्यकार का मन्तव्य है-व्यवहारसूत्र के दसवें उद्देशक का पांचवां सूत्र ही अन्तिम सूत्र है। पुरुषप्रकार से दसविधवैयावत्य पर्यन्त जितने सूत्र हैं, वे सब परिवधित हैं या चूलिकारूप है। [ 15 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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