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________________ 52 [दशा तस्कन्ध 2. य 2. जइ मझे चरिज्जा; नो प्राइमे चरिज्जा, नो चरिमे धरेज्जा। 3. जइ चरिमे चरेज्जा; नो प्राइमे चरेज्जा, नो मज्झिमे चरेज्जा / एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार के भिक्षाचर्या करने के तीन काल कहे हैं, यथा१. दिन का प्रथम भाग, 2. दिन का मध्य भाग, 3. दिन का अन्तिम भाग / 1. यदि दिन के प्रथमभाग में भिक्षाचर्या के लिए जाए तो मध्य और अन्तिम भाग में न जाए। यदि दिन के मध्यभाग में भिक्षाचर्या के लिए जाए तो प्रथम और अन्तिम भाग में न जाए। 3. यदि दिन के अन्तिमभाग में भिक्षाचर्या के लिए तो प्रथम और मध्यम भाग में न जाए। प्रतिमाधारी की गोचरचर्या मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स छविहा गोयरचरिया पण्णत्ता, तं जहा१. पेडा, 2. प्रद्धपोड, 3. गोमुत्तिया, 4. पंतगवीहिया, 5. संबुक्कावट्टा, 6. गंतुपच्चागया। एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार के छः प्रकार की गोचरी कही गई है, यथा 1. चौकोर पेटी के आकार से भिक्षाचर्या करना। 2. अर्धपेटी के आकार से भिक्षाचर्या करना। 3. बैल के मूत्रोत्सर्ग के आकार से भिक्षाचर्या करना। 4. पतंगिये के गमन के आकार से भिक्षाचर्या करना। 5. शंखावर्त के आकार से भिक्षाचर्या करना। 6. जाते या पुनः पाते भिक्षाचर्या करना। प्रतिमाधारी का वसतिवास-काल मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स जत्थ णं केइ जाणइ, कप्पइ से तत्थ एगराइयं वसित्तए। जत्थ णं केइ न जाणइ, कप्पइ से तत्थ एगरायं वा, दुरायं वा वसित्तए / नो से कप्पइ एगरायाश्रो वा, दुरायानो वा परं वत्थए / जे तत्थ एगरायानो वा, दुरायाओ वा परं वसति, से संतरा छेए वा परिहारे वा। एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार को जहां कोई जानता हो, वहां एक रात रहना कल्पता है। जहां कोई नींह जानता हो, वहां उसे एक या दो रात रहना कल्पता है / किन्तु एक या दो रात से अधिक रहना नहीं कल्पता है / यदि एक या दो रात से अधिक रहता है तो वह इस कारण से दीक्षाछेद या परिहार तप का पात्र होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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