________________ [वशाभुतस्कन्ध परित्यागी नहीं होता है। इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट सात मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है। यह सातवीं उपसाकप्रतिमा है। आठवीं उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है यावत् वह पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। वह सचित्ताहार का परित्यागी होता है, वह सर्व प्रारम्भों का परित्यागी होता है, किन्तु वह दूसरों से प्रारम्भ कराने का परित्यागी नहीं होता है / इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट पाठ मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है। यह पाठवी उपासक प्रतिमा है। नवमी उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है यावत् वह पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। वह सचित्ताहार का परित्यागी होता है। वह प्रारम्भ का परित्यागी होता है। वह दूसरों के द्वारा प्रारम्भ कराने का भी परित्यागी होता है। किन्तु उद्दिष्टभक्त का परित्यागी नहीं होता है। इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट नौ मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है। यह नवमी उपासकप्रतिमा है। दसवीं उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है यावत् वह उद्दिष्टभक्त का परित्यागी होता है। वह शिर के बालों का क्षरमुडन करा देता है अथवा शिखा (बालों) को धारण करता है। किसी के द्वारा एक बार या अनेक बार पूछे जाने पर उसे दो भाषाएँ बोलना कल्पता है / यथा 1. यदि जानता हो तो कहे-"मैं जानता हूँ।" 2. यदि नहीं जानता हो तो कहे-"मैं नहीं जानता हूँ।" इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट दस मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है / यह दसवीं उपासकप्रतिमा है। ग्यारहवीं उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है यावत् वह उद्दिष्टभक्त का परित्यागी होता है। वह क्षुरा से सिर का मुंडन करता है अथवा केशों का लुचन करता है, वह साधु का प्राचार, भण्डोपकरण और वेषभूषा ग्रहण करता है। जो श्रमण निर्ग्रन्थों का धर्म होता है, उसका सम्यक्तया काया से स्पर्श करता हुआ, पालन करता हुआ, चलते समय आगे चार हाथ भूमि को देखता हुआ सप्राणियों को देखकर उनकी रक्षा के लिए अपने पैर उठाता हुआ, पैर संकुचित करता हुआ अथवा तिरछे पैर रखकर सावधानी से चलता है। ___ यदि दूसरा जीवरहित मार्ग हो तो उसी मार्ग पर यतना के साथ चलता है किन्तु जीवसहित सीधे मार्ग से नहीं चलता। केवल ज्ञाति-वर्ग से उसके प्रेम-बन्धन का विच्छेद नहीं होता है इसलिए उसे ज्ञातिजनों के घरों में भिक्षावृत्ति के लिए जाना कल्पता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org