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[252] [Hatkalpasutra] 7. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is falling or slipping from a dangerous (inhabited by ferocious animals), uneven, or mountainous place. 8. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is falling or sinking into mud, mire, or water. 9. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is boarding or disembarking a boat. 10. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is distracted. 11. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is distressed. 12. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is afflicted by a disease. 13. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is suffering from a fever. 14. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is suffering from a cold. 15. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is suffering from a cough. 16. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is suffering from a headache. 17. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is suffering from a stomach ache. 18. A Niggrantha does not transgress the Jina's command by taking hold of or supporting a Niggranthi who is suffering from a wound.
________________ 252] [हत्कल्पसूत्र साधु द्वारा साध्वी को अवलम्बन देने का विधान 7. निग्गथे निग्गीथ दुग्गंसि वा, विसमंसि वा, पध्वयंसि वा पक्खलमाणि वा पवटमाणि वा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 8. निग्गंथे निग्य सेयंसि वा, पंकसि वा, पणगंसि वा उदयंसि वा, प्रोकसमाणि वा ओवज्ममाणि वा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 9. निग्गथे निगथि नावं प्रारोहमाणि वा, ओरोहमाणि वा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ। 10. खित्तचित्तं निग्गथि निग्गथे गिण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 11. दित्तचित्तं निग्गथि निग्गथे गिण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 12. जक्खाइट्ठ निग्गथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 13. उम्मायपत्तं निगथि निग्गथे गिण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 14. उवसांगपत्तं निग्गथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 15. साहिगरणं निगथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 16. सपायच्छित्तं निग्गथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 17. भत्तपाणपडियाइक्खियं निग्गथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 18. अट्ठजायं निग्गथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ / 7. दुर्गम--(हिंसक जानवरों से व्याप्त) स्थान, विषम स्थान या पर्वत से फिसलती हुई या गिरती हुई निर्ग्रन्थी को निर्ग्रन्थ ग्रहण करे या सहारा दे तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। ___8. दल-दल, पंक, पनक या जल में गिरती हुई या डूबती हुई निर्ग्रन्थी को निर्ग्रन्थ ग्रहण करे या सहारा दे तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। 9. नौका पर चढ़ती हुई या नौका से उतरती हुई निर्ग्रन्थी को निर्ग्रन्थ ग्रहण करे या सहारा दे तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। 10. विक्षिप्तचित्त वाली निर्ग्रन्थी को निर्ग्रन्थ ग्रहण करे या अवलम्बन दे तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org