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## Third Objective: Prohibition of Nirgranthis and Nirgranthis residing in each other's company
1. It is not permissible for Nirgranthis to reside in the company of Nirgranthis, whether they are: 1. Standing, 2. Sitting, 3. Lying down, 4. Sleeping, 5. Drowsing, 6. Eating, 7. Drinking, 8. Consuming Khadim, 9. Consuming Sadim food, 10. Excreting, 11. Urinating, 12. Expelling phlegm, 13. Cleaning nasal discharge, 14. Studying, 15. Meditating, or 16. Performing Kayotsarga.
2. It is not permissible for Nirgranthis to reside in the company of Nirgranthis, whether they are standing or performing Kayotsarga.
**Discussion:** Generally, Sadhus should not reside in the company of Sadhvis, and Sadhvis should not reside in the company of Sadhus. If it is necessary to do so due to some reason, they should perform their tasks while standing and return quickly. They should not engage in the activities mentioned in the Sutras. Because staying for a long time can lead to various apprehensions, and increased familiarity can lead to a breach of Brahmacharya. It is also considered inappropriate for Sadhus and Sadhvis to eat, drink, or dispose of excreta in each other's company.
In the seventh chapter of the Vyavahar Upadesh, it is stated that Sadhvis can visit Sadhus to listen to their studies and share their own. Therefore, it is permissible for Sadhvis to visit Sadhus for this purpose. The Thanang Sutra also mentions that visiting each other for service and other tasks is permissible.
**Rules regarding the acceptance of leather by Sadhus and Sadhvis:**
3. It is not permissible for Nirgranthis to accept leather from a woman.
4. It is permissible for Nirgranthis to accept leather from a woman if: 1. It is offered by a respected person, 2. It is not offered by a non-respected person, 3. It is offered by a single person, 4. It is not offered by multiple people.
________________ तीसरा उद्देशक निम्रन्थ-निर्ग्रन्थी को परस्पर उपाश्रय में खड़े रहने आदि का निषेध 1. नो कप्पइ निम्गंथाणं, निग्गंथोणं उवस्सयंसि-१. चिट्टित्तए वा, 2. निसीइत्तए वा, 3. तुयट्टित्तए वा, 4. निदाइत्तए वा, 5. पयलाइत्तए वा, 6. असणं वा, 7. पाणं वा, 8. खाइमं वा, 9. साइमं वा पाहारं पाहारित्तए, 10. उच्चारं वा, 11. पासवणं वा, 12. खेलं वा, 13. सिंघाणं वा परिदृवित्तए, 14. सज्झायं वा करित्तए, 15. साणं वा झाइत्तए, 16. काउसग्गं वा (करित्तए) ठाइत्तए। 2. नो कम्पइ निग्गंथीणं निग्गंथाणं उवस्सयंसि चिट्ठित्तए वा जाव काउस्सग्गं वा ठाइत्तए / 1. निर्ग्रन्थों को निर्ग्रन्थियों के उपाश्रय में---१. खड़े रहना, 2. बैठना, 3. लेटना, 4. निद्रा लेना, 5. ऊंघ लेना, 6. अशन, 7. पान, 8. खादिम, 9. स्वादिम का आहार करना, 10. मल, 11. मूत्र, 12. कफ और, 13. नाक का मैल परठना, 14. स्वाध्याय करना, 15. ध्यान करना तथा 16. कायोत्सर्ग कर स्थित होना नहीं कल्पता है। 2. निर्ग्रन्थियों को निर्ग्रन्थों के उपाश्रय में खड़े रहना यावत् कायोत्सर्ग कर स्थित होना नहीं कल्पता है। विवेचन-सामान्यतः साधुनों को साध्वियों के उपाश्रय में तथा साध्वियों को साधुओं के उपाश्रय में नहीं जाना चाहिए। यदि कारणवश जाना पड़े तो उन्हें खड़े-खड़े ही कार्य करके शीघ्र वापस लौट पाना चाहिए और वहां पर सूत्रोक्त कार्य नहीं करने चाहिए। क्योंकि अधिक समय तक ठहरने पर लोगों में नाना प्रकार की आशंकाएं उत्पन्न होती हैं, अधिक परिचय बढ़ने से ब्रह्मचर्य में भी दूषण लगना सम्भव है और साधु-साध्वियों का एक-दूसरे के उपाश्रय में खान-पान या मल-मूत्रादि का विसर्जन लोक-निन्दित है। साध्वियों को साधु के पास स्वाध्याय सुनाने एवं परस्पर वाचना देने का व्यव. उ. 7 में कथन है, अतः उस हेतु साध्वियों का साधुओं के उपाश्रय में आना-जाना आगमसम्मत है तथा सेवा आदि कार्यों से भी एक-दूसरे के उपाश्रय में आने-जाने का ठाणांग सूत्र में कथन किया गया है। साधु-साध्वी को चर्म ग्रहण के विधि-निषेध 3. नो कप्पइ निग्गंथीणं सलोमाई चम्माई अहिद्वित्तए। 4. कप्पइ निग्गंथाणं सलोमाइं चम्माइं अहिद्वित्तए, से वि य परिभुत्ते, नो चेव णं अपरिभुत्ते, से वि य पाडिहारिए, नो चेव णं अपाडिहारिए, से वि य एगराइए, नो चेव णं अणेगराइए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org