________________ में भ्रणहत्या को ब्रह्महत्या से भी विशेष पाप माना है। बहदारण्यकोपनिषद में चोर और भ्रणहत्यारे को महापापी में गिना है। वसिष्ठसूत्र ने पापियों को तीन कोटि में बांटा है-१. एनस्वी, 2. महापातकी, 3. उपपातकी। एनस्वी साधारण पापी को कहते हैं। उसके लिए विशिष्ट प्रायश्चित्त की व्यवस्था की गई है। वसिष्ठ के मतानुसार महापातक पांच हैं (1) गुरु की शय्या को अपवित्र करना (2) सुरापान (3) भ्रण की हत्या (4) ब्राह्मण के हिरण्य की चोरी (5) पतित का संसर्ग / उपपातकी वह है जो अग्निहोत्र का त्याग कर देता है। अपने अपराध से गुरु को कुपित करता है। नास्तिकों के यहाँ जीविका का अर्जन करता है। यह सत्य है इन पापों की कोटियों के सम्बन्ध में भी विभिन्न मत रहे हैं, विस्तारभय से हम उन सबकी चर्चा और मतों का उल्लेख यहाँ नहीं कर रहे हैं। ब्रह्माहत्या, सुरापन, चोरी, गुरु की पली के साथ सम्भोग आदि के वर्णन अग्निपुराण, प्रायश्चित्तविवेक, आपस्तम्ब धर्मसूत्र, मनुस्मृति आदि में विस्तार से है। नारद का कथन है कि यदि व्यक्ति माता, मौसी, सास, मामी, फूफी, चाची, मित्रपत्नी, शिष्यपत्नी, बहिन, बहिन की सखी, पुत्रवधू, आचार्यपत्नी, सगोत्रनारी, दाई, व्रतवती नारी एवं ब्राह्मणनारी के साथ सम्भोग करता है वह गुरुतल्प नामक व्यभिचार के पाप का अपराधी हो जाता है। ऐसे दुष्कृत्य के लिए शिश्न-कर्तन के अतिरिक्त कोई और दण्ड नहीं है। विभिन्न प्रकार के पाप करने के पश्चात् उस पाप से अपने आपको बचाने के लिए अदिति, मित्र, वरुण आदि की स्तुतियाँ करने का क्रम चालू हुआ। अपने अपराध के परिणामों से भयभीत होकर उन्होंने विविध प्रकार के व्रत आदि भी करने प्रारम्भ किये। ऋग्वेद के अनुसार सर्वप्रथम पाप के फल को दूर करने हेतु दया के लिए प्रार्थना पाप से बचने के लिए स्तुतियाँ तथा गम्भीर पापों के फल से छुटकारा पाने हेतु यज्ञ का विधान किया। तैत्तिरीयसंहिता शतपथब्राह्मण' का मन्तव्य है कि अश्वमेध करने से देवतागण राजा को पाप मुक्त कर देते थे। पाप से मुक्त होने का एक अन्य साधन था पाप की स्वीकारोक्ति / गौतम धर्मसत्र, वसिष्ठस्मृति का कथन है—जप-तप-होम-उपवास एवं दान ये दुष्कृत्य के प्रायश्चित्त हैं। आचार्य मनु ने लिखा है कि अपराध को स्वीकार कर पश्चात्ताप तप, गायत्री मन्त्रों के जाप से पापी अपराध से मुक्त हो जाता है। यदि वह यह कार्य न कर सके तो दान से मुक्त हो जाता है। यही बात पाराशर शातातपस्मृति 10 भविष्यपुराण'' में बताई गई है। शतपथब्राह्मण 2 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो 1. बृहदारण्यकोपनिषद् 4/3/22 नारदस्मृति श्लोक 73-75 ऋग्वेद 7/86/4-5, 8/88/6-7, 7/89/1-4 4. तैत्तिरीयसंहिता 5/3/12/1-2 शतपथब्राह्मण 13/3/1/1 6. गौतमधर्मसूत्र 19/11 7. वसिष्ठस्मृति 22/8 मनुस्मृति 3/227 पराशर माघवीय 10/40 10. शातातपस्मृति 1/4 11. भविष्यपुराण प्रायः विवेक पृ० 31 12. शतपथब्राह्मण 2/5/2/20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org