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________________ 420] [निशीथसूत्र 16. जो भिक्षु पहले वाचना देने योग्य सूत्रों की वाचना दिए बिना बाद में वाचना देने योग्य सूत्रों की वाचना देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। 17. जो भिक्षु नव ब्रह्मचर्य अध्ययन नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध की वाचना दिए बिना उत्तमश्रुत की वाचना देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन--जिस प्रकार जनसमूह कहीं पर बैठकर किसी का प्रवचन सुनता है उस स्थान को "समवसरण" कहा जाता है वैसे ही अनेक तत्त्वों की चर्चाओं का जिस आगम में संग्रह हो उस पागम को भी “समवसरण" कहा जाता है। __ जिस प्रकार मकान की प्रथम (या नीचे की) मंजिल को हेटिल्ल (अधस्तन) कहा जाता है और दूसरी मंजिल को "उवरिल्ल" कहा जाता है, उसी प्रकार यहाँ सूत्र में प्रथम वाचना के आगम को "हेटिल्ल" और उसके बाद की वाचना के आगम को "उवरिल्ल" कहा गया है। ___ अतः आगम, श्रुतस्कन्ध, अध्ययन, उद्देशक आदि जो अनुक्रम से पहले वाचना देने के हैं उनकी वाचना पहले दी जाती है और जिनकी वाचना बाद में देने की है उनकी वाचना बाद में दी जाती है / यथा ____1. प्राचारांगसूत्र की वाचना पहले दी जाती है और सूयगडांगसूत्र की वाचना बाद में दी जाती है। 2. प्रथम श्रुतस्कन्ध की वाचना पहले दी जाती है और द्वितीय श्रुतस्कन्ध की वाचना बाद में दी जाती है। 3. प्रथम अध्ययन की एवं उसमें भी प्रथम उद्देशक की वाचना पहले दी जाती है और आगे के अध्ययन उद्देशकों की वाचना बाद में दी जाती है / चूर्णिकार ने यहां बताया है कि दशवैकालिक की अपेक्षा अावश्यकसूत्र प्रथम वाचना-सूत्र है। उत्तराध्ययनसूत्र की अपेक्षा दशवैकालिकसूत्र प्रथम वाचना-सूत्र है। आवश्यक सूत्र में भी सामायिक अध्ययन प्रथम वाचना योग्य है, शेष अध्ययन क्रम से पश्चात् वाचना योग्य है। व्यव. उ. 10 में कालिक सूत्रों की वाचना का क्रम दिया है तथा साथ ही दीक्षा पर्याय का सम्बन्ध भी बताया गया है / उस क्रम में उत्कालिकश्रुत एवं ज्ञाताधर्मकथा आदि अंगों का उल्लेख नहीं है / प्राचारशास्त्र एवं संग्रह शास्त्रों का ही क्रम दिया है / अत: कथा या तपोमय संयमी जीवन के वर्णन वाले ज्ञातादि कालिकसूत्र एवं उववाई आदि उत्कालिक सूत्रों का कोई निश्चित क्रम नहीं है, ऐसा समझना चाहिए तथा कितने ही सूत्रों की रचना-संकलना भी व्यवहारसूत्र की रचना के बाद में हई है। जिससे उनका अध्ययनक्रम वहाँ नहीं है। अत: गीतार्थ मुनि उनको वाचना योग्य अवसर देखकर कभी भी दे सकते हैं / प्रस्तुत सूत्रगत प्रायश्चित्त, व्यवहारसूत्र में कहे गए अनुक्रम की अपेक्षा उत्क्रम करने पर समझना चाहिए / आवश्यकसूत्र एवं उत्तराध्ययनसूत्र का उपर्युक्त क्रम जो चूर्णिकार ने बताया है उसे आचारांग के पूर्व का क्रम ही समझना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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