________________ अठारहवां उद्देशक] 10. जो भिक्षु प्रतिनावा करके नावा में बैठता है या बैठने वाले का अनुमोदन करता है। 11. जो भिक्षु ऊर्ध्वगामिनी नावा पर या अधोगामिनी नाया पर बैठता है या बैठने वाले का अनुमोदन करता है। 12. जो भिक्षु एक योजन से अधिक प्रवाह में जाने वाली अथवा अर्धयोजन से अधिक प्रवाह में जाने वाली नावा पर बैठता है या बैठने वाले का अनुमोदन करता है / / 13. जो भिक्ष नावा को उपर की ओर (किनारे) खींचता है, नीचे की ओर (जल में) खींचता है. लंगर डाल कर बांधता है या रस्सी से कस कर बांधता है या एसा करन ता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है। 14. जो भिक्षु नावा को नौ-दंड (चप्पू) से, नौका पप्फिडक (नौका चलाने के उपकरणविशेष) से, बांस से या बल्ले से चलाता है या चलाने वाले का अनुमोदन करता है / 15. जो भिक्षु नाव में से भाजन द्वारा, पात्र द्वारा, मिट्टी के बर्तन द्वारा या नावा उसिंचनक द्वारा पानी निकालता है या निकालने वाले का अनुमोदन करता है। 16. जो भिक्षु नाव के छिद्र में से पानी आने पर अथवा नाव को डुबती हुई देखकर हाथ से, पैर से, पीपल के पत्ते (पत्र समूह) से, कुस के पत्ते (कुससमूह) से, मिट्टी से या वस्त्रखंड से उसके छेद को बन्द करता है या बंद करने वाले का अनुमोदन करता है। 17. नाव में रहा हुमा भिक्षु नाव में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है / 18. नाव में रहा हुआ भिक्षु जल में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 19. नाव में रहा हुआ भिक्षु कीचड़ में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 20. नाव में रहा हया भिक्षु भूमि पर रहे हुए गहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 21. जल में रहा हुआ भिक्षु नाव में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है / 22. जल में रहा हुआ भिक्षु जल में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है / 23. जल में रहा हुमा भिक्षु कीचड़ में रहे हुए गृहस्थ से अशन, पान, खादिम या स्वादिम ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org