________________ सत्रहवां अध्ययन] [373 केउराणि वा, 10. कुण्डलाणि वा, 11. पट्टाणि वा, 12. मउडाणि वा, 13. पलंबसुत्ताणि वा, 14. सुवष्णसुत्ताणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ / 10. जे भिक्खू कोउहल्ल-वडियाए हाराणि वा जाव सुवण्णसुत्ताणि वा धरेइ, धरतं वा साइज्जइ। 11. जे भिक्खू कोउहल्ल-वडियाए हाराणि वा जाव सुवण्णसुत्ताणि वा पिणद्धेइ पिणतं वा साइज्जइ। 12. जे भिक्खू कोउहल्ल-वडियाए-१. आईणाणि वा, 2. सहिणाणि वा, 3. सहिणकल्लाणाणि वा, 4. आयाणि वा, 5. कायाणि वा, 6. खोमियाणि वा, 7. दुगुलाणि वा, 8. तिरोडपट्टाणि वा, 9. मलयाणि वा, 10. पतुष्णाणि वा, 11. अंसुयाणि वा, 12. चिणंसुयाणि वा, 13. देसरागाणि वा, 14. अभिलाणि वा, 15. गज्जलाणि वा, 16. फलिहाणि वा, 17. कोयवाणि वा, 18. कंबलाणि वा, 19. पावाराणि वा, 20. उद्दाणि वा, 21. पेसाणि वा, 22. पेसलेसाणि वा, 23. किण्हमिगाईणगाणि वा, 24. नीलमिगाईणगाणि वा, 25. गोरमिगाईणगाणि वा, 26. कणगाणि वा, 27. कणगकंताणि वा, 28. कणगपट्टाणि वा, 29. कणग-खचियाणि वा, 30. कणगफुसियाणि वा, 31. बग्घाणि वा, 32. विवग्याणि वा, 33. आभरणचित्ताणि वा, 34. आभरण-विचित्ताणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। 13. जे भिक्खू कोउहल्ल-वडियाए आईणाणि वा जाव आभरण-विचित्ताणि वा धरेई, धरतं वा साइज्ज। 14. जे भिक्खू कोउहल्ल-वडियाए आईणाणि वा जाव आभरण-विचित्ताणि वा पिणद्धेइ, पिणद्धेतं वा साइज्जइ। 1. जो भिक्षु कौतूहल के संकल्प से किसी त्रसप्राणी को 1. तृण-पाश से, 2. मुज-पाश से, 3. काष्ठ-पाश से, 4, चर्म-पाश से, 5. बेंत-पाश से, 6. रज्जु-पाश से, 7. सूत्र (डोरे) के पाश से बांधता है या बांधने वाले का अनुमोदन करता है। 2. जो भिक्षु कौतूहल के संकल्प से किसी त्रसप्राणी को तृण-पाश से यावत् सूत्र-पाश से बंधे हुए को खोलता है या खोलने वाले का अनुमोदन करता है / 3. जो भिक्षु कौतुहल के संकल्प से 1 तृण की माला, 2. मुज की माला, 3. बेंत की माला, 4. काष्ठ की माला, 5. मोम की माला, 6. भींड की माला, 7. पिच्छी की माला, 8. हड्डी की माला, 9. दंत की माला, 10. शंख की माला, 11. सींग की माला, 12. पत्र को माला, 13. पुष्प की माला, 14. फल की माला, 15. बीज की माला, 16. हरित (वनस्पति) की माला बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है। 4. जो भिक्षु कौतूहल के संकल्प से तृण की माला यावत् हरित की माला रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org