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________________ 340] [निशीपसूत्र वृत्ति करता है वह चिकने कर्मों का बंध करता है, जिससे वह घोर एवं दुस्तर संसार-सागर में गिरता है।" "केवल विभूषा के विचारों को भी ज्ञानी, प्रवृत्ति के समान ही कर्मबन्ध एवं संसार का कारण मानते हैं / इस विभूषावृत्ति से अनेक सावध प्रवृत्तियाँ होती हैं / यह षटकाय-रक्षक मुनि के आचरण योग्य नहीं है।" 3. दश. अ. 8 गा. 57 में संयम के लिए विभूषावृत्ति को तालपुट विष की उपमा दी गई है। 4. उत्तरा. अ. 16 में कहा है कि 'जो भिक्षु विभूषा के लिए प्रवृत्ति करता है वह निर्ग्रन्थ नहीं है, अतः भिक्षु को विभूषा नहीं करनी चाहिए। भिक्षु विभूषा और शरीर-परिमंडन का त्याग करे तथा ब्रह्मचर्यरत भिक्षु शृंगार के लिए वस्त्रादि को भी धारण न करे।' इन पागम स्थलों से यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मचर्य के लिये विभूषावृत्ति सर्वथा अहितकर है. कर्मबंध का कारण है तथा प्रायश्चित्त के योग्य है। अत: भिक्ष विभषा के संकल्पों का त्याग करें अर्थात् शारीरिक शृगार करने का एवं उपकरणों को सुन्दर दिखाने का प्रयत्न न करे / उपकरणों को संयम की और शरीर की सुरक्षा के लिए ही धारण करे एवं आवश्यक होने पर ही उनका प्रक्षालन करे। पन्द्रहवें उद्देशक का सारांश-- 1-4 परुष वचन आदि से अन्य भिक्षु की प्रासातना करना , 5-12 सचित्त पाम्र या उनके खंड आदि खाना, 13-66 गृहस्थ से अपना काय-परिकर्म करवाना, 67-75 अकल्पनीय स्थानों में मल-मूत्र परठना, 76-97 गृहस्थ को आहार-वस्त्रादि देना, पार्श्वस्थादि से आहार-वस्त्रादि का लेन-देन करना। वस्त्र ग्रहण करने में उद्गम आदि दोषों के परिहार के योग्य पूर्ण गवेषणा न करना, 99-152 विभूषा के संकल्प से शरीर-परिकर्म के 54 सूत्रोक्त कार्य करना, विभूषा के संकल्प से वस्त्रादि उपकरण रखना, विभूषा के संकल्प से वस्त्रादि उपकरणों को धोना, इत्यादि प्रवृत्तियों का लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है / इस उद्देशक के 127 सूत्रों के विषयों का कथन निम्न आगमों में है, यथा५-१२ सचित्त आम्र आदि खाने का निषेध, -प्रा. श्रु. 2 अ.७ उ. 2 13-66 गृहस्थ से शरीर-परिकर्म करवाने का निषेध, -प्रा. श्रु. 2 अ. 13 154 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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