________________ [निशीथसूत्र साध्वी को संख्या की अपेक्षा से चार चादर रखना कल्पता है। प्रमाण अर्थात् नाप की अपेक्षा से तीन प्रमाण वाली [4 हाथ, 3 हाथ, 2 हाथ ] चादर रखना कल्पता है / ये चादरें एक खंड वाली या अनेक खंड वाली भी हो सकती हैं / एक खंड वाली में सिलाई करने की आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु अनेक खंड वाली में सिलाई करने की या सिलाई करवाने को आवश्यकता होती है / अतः प्रस्तुत सूत्र में अनेक वस्त्रखंड जोड़ कर बनाई जाने वाली चादर का ही अधिकार है। भिक्षु या भिक्षुणी सिलाई का आवश्यक कार्य स्वतः ही कर सकते हैं। कोई करने वाला न हो तो परिस्थितिवश गीतार्थ की आज्ञा से वे परस्पर करवा सकते हैं। किसी समय समीपस्थ भिक्षु या भिक्षुणी कोई भी सिलाई का कार्य न कर सके तब वे स्वयं गृहस्थ से सिलवायें तो उद्देशक 5 सू. 12 के अनुसार लघुमासिक प्रायश्चित्त पाता है। किन्तु साध्वी की चादर साधु गृहस्थ के द्वारा सिलवावे तो प्रस्तुत सूत्र के अनुसार लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। .. गृहस्थ से वस्त्र सिलवाना भी साधु की मर्यादा में नहीं है तथापि साध्वी की चादर सिलवाने में और भी अन्य दोषों की सम्भावना रहती है / यथा--- सोने वाला गृहस्थ पूछ भी सकता है कि किसकी चादर है ? सही उत्तर देने से जानकारी होने पर वशीकरण प्रयोग कर सकता है, साधु के ब्रह्मचर्य में शंकित होकर गलत प्रचार कर सकता है / अत: ऐसा नहीं करना ही उत्तम है। ___ गृहस्थ से सिलवाना आवश्यक होने पर नीचे लिखे क्रम से विवेकपूर्वक करवाना चाहिये-- भाष्य गाथा-"पच्छाकड, साभिग्गह, णिरभिग्गह, भद्दए य असण्णी / गिहि अण्णतिथिएण वा, गिहि पुवं एतरे पच्छा // इस गाथा के अर्थ का स्पष्टीकरण उद्देशक 1 सूत्र 15 के विवेचन में किया गया है / ठाणांग अ. 4 सू. 59 एवं प्राचा. श्रु. 2 अ. 5 उ. 1 में साध्वी को 4 चादर रखने का तथा उसके प्रमाण का कथन है / प्राचारांगसूत्र में यह भी कहा गया है कि उक्त प्रमाण का वस्त्र न मिले तो कम प्रमाण वाले वस्त्र खंडों को परस्पर जोड़कर उक्त प्रमाण वाली चादर बना लेनी चाहिये / अत: ऐसी स्थिति में सिलाई करना या करवाना आवश्यक हो जाता है, तब सूत्राज्ञा का ध्यान रखकर प्रवृत्ति करने पर प्रायश्चित्त नहीं आता है। स्थावरकाय-हिंसा प्रायश्चित्त ८-जे भिक्खू 1. पुढविकायस्स वा, 2. आउकायस्स वा, 3. अगणिकायस्स वा 4. वाउकायस्स वा, 5. वणस्सइकायस्स वा, कलमायमवि समारंभइ, समारंभंतं वा साइज्जइ / ८-जो भिक्षु 1. पृथ्वीकाय, 2. अपकाय, 3. अग्निकाय, 4. वायुकाय या 5. वनस्पतिकाय की अल्प मात्रा में भी हिंसा करता है या हिंसा करने वाले का अनुमोदन करता है। [ उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त पाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org