________________ [निशीथसूत्र अयोग्य को प्रवजित करने का प्रायश्चित्त 83. जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासग वा अणुवासगं वा अणलं पम्वावेइ, पवायेंतं वा साइज्जइ। 84. जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासगं वा अणवासगं वा अणलं उवट्ठावेइ, उवट्ठावेंतं वा साइज्जइ। 83. जो भिक्षु अयोग्य स्वजन या परजन, उपासक या अनुपासक को प्रवजित करता है या प्रवजित करने वाले का अनुमोदन करता है। 84. जो भिक्षु अयोग्य स्वजन या परजन, उपासक या अनुपासक को उपस्थापित करता है या उपस्थापित करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन--प्रथम सूत्र में अयोग्य को दीक्षा देने का प्रायश्चित्त कथन है। यदि किसी को दीक्षा देने के बाद जानकारी हो कि यह दीक्षा के अयोग्य है तो जानकारी होने के बाद उसे उपस्थापित करने पर द्वितीय सूत्र के अनुसार प्रायश्चित्त आता है। प्रथम सूत्र में जानकर अयोग्य को दीक्षा देने का प्रायश्चित्त कहा है / द्वितीय सूत्र में अनजान में दीक्षा दिये बाद अयोग्य जानकर के भी बड़ी दीक्षा देने का प्रायश्चित्त कहा है। इससे यह ध्वनित होता है कि दीक्षा देने के बाद अयोग्यता की जानकारी होने पर बड़ी दीक्षा नहीं देनी चाहिए। अयोग्यता की जानकारी न होने के दो कारण हो सकते हैं / यथा--- 1. दीक्षार्थी द्वारा अपनी अयोग्यता को छिपा लेना। 2. दीक्षादाता के द्वारा छानबीन करके पूर्ण जानकारी न करना / दूसरे कारण में दीक्षादाता का प्रमाद है, अतः वह सूत्रोक्त प्रायश्चित्त को प्राप्त करता है / उपस्थापित करने के बाद उसे छोड़ना या न छोड़ना यह गीतार्थ के निर्णय पर निर्भर है / प्रव्रज्या के अयोग्य व्यक्ति निम्नलिखित हैं 1. बाल-पाठ वर्ष से कम उम्र वाला। 2. वृद्ध-सत्तर (70) वर्ष से अधिक उम्र वाला / 3. नपुंसक-जन्म-नपुंसक, कृतनपुंसक, स्त्रीनपुसक तथा पुरुष नपुंसक आदि। 4. जड़-शरीर से अशक्त, बुद्धिहीन व मूक / 5. क्लीब-स्त्री के शब्द, रूप, निमन्त्रण आदि के निमित्त से उदित मोह-वेद को निष्फल करने में असमर्थ 6. रोगी-१६ प्रकार के रोग और आठ प्रकार की व्याधि में से किसी भी रोग या व्याधि से युक्त / शीघ्रघाती व्याधि कहलाती है और चिरघाती रोग कहलाते हैं। —भाष्य गा० 3647 / 7. चोर-रात्रि में पर-घर प्रवेश कर चोरी करने वाला, जेब काटने वाला इत्यादि अनेक प्रकार के चोर डाकू लुटेरे। 8. राज्य का अपराधी--किसी प्रकार का राज्यविरुद्ध कार्य करने पर अपराधी घोषित किया हुआ / 9. उन्मत्त-यक्षाविष्ट या पागल / 10. चक्षुहीनजन्मांध हो या बाद में किसी एक या दोनों आँखों की ज्योति चली गई हो / 11. दास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org