SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 190] [निशोषसूत्र भोजन, निवासस्थान, राज्याभिषेक ग्रादि प्रसंगों के संबंध में विवेक रखने का सूचन किया गया है तो इस सूत्र में उन बड़े राजाओं की राजधानी में बारम्बार प्रदेश का निषेध और प्रायश्चित्त सूचित किया है। भाष्य में अन्य अनेक संयम सम्बन्धी दोषों की सम्भावनाएं भी कही हैं। इन राजधानियों में अनेक महोत्सव राजा के तथा नगरवासियों के होते रहते हैं / नृत्य, गीत, वादित्र वादन, स्त्री पुरुषों के अनेक मोहक रूप आदि विषयवासनावर्धक वातावरण रहता है। यह देखकर भुक्तभोगी को पूर्वकालिक स्मृति, अभुक्त को कुतूहल आदि से संयम-अरति एवं असमाधि उत्पन्न हो सकती है तथा जनता के कोलाहल आदि से स्वाध्याय, ध्यान की भी हानि होती है / वाहनों को प्रचुरता से और जनाकोण मार्ग रहने से भिक्षागमन आदि में संघट्टन परिघट्टन प्रादि होते हैं, इत्यादि दोषों के कारण इन दम बड़ी राजधानियों में तथा ऐसी अन्य बड़ी नगरियों में भी बारम्बार जाना-पाना संयमी के लिए हितकर नहीं है। राजा के अधिकारी व कर्मचारी वर्ग के निमित्त बना हुआ आहार ग्रहण करने का प्रायश्चित्त 21. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा साइमं वा परस्स नोहडं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। तंजहा–१. खत्तियाण वा, 2. राईण बा, 3. कुराईण वा, 4. रायबंसियाण वा, 5. रायपेसियाण वा। 22. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, परस्स णीहडं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ / तंजहा–१. गडाण वा, 2. पट्टाण वा, 3. कच्छुयाण वा, 4. जल्लाण वा, 5. मल्लाण वा, 6. मुट्रियाण वा, 7. वेलंबगाण वा, 8. खेलयाण वा, 9. कहगाण वा, 10 पवगाण वा, 11. लासगाण वा। 23.. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, परस्स णीहडं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ / . तंजहा-१. आस-पोसयाण वा, 2. हस्थि-पोसयाण वा, 3. महिस-पोसयाण वा, 4. वसहपोसयाण वा, 5. सीह-पोसयाण वा, 6. वग्घ-पोसयाण वा, 7. अय-पोसयाण वा, 8. पोय-पोसयाण वा, 9. मिग-पोसयाण वा, 10. सुणय-पोसयाण वा, 11. सूयर-पोसयाण वा, 12. मेंढ-पोसयाण वा, 13. कुक्कुड-पोसयाण वा, 14. मक्कड-पोसयाण वा, 15. तित्तिर-पोसयाण वा, 16. वट्टय-पोसयाण वा, 17. लावय-पोसयाण वा, 18. चोरल्ल-पोसयाण वा, 19. हंस-पोसयाण वा, 20. मयूर-पोसयाण वा, 21. सुय-पोसयाण वा। 24. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, परस्स णीहडं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy