________________ सातवां उद्देशक प्राचारांग सूत्र श्रु. 2, अ. 5, उ. 1 में आये शब्दों के अनुसार हो चूर्णिकार ने व्याख्या की है / उनके सामने प्राचारांग सूत्र के सदृश ही पाठ था। निशीथसूत्र का उपलब्ध मूल पाठ अन्य किसी सूत्र में उपलब्ध नहीं है / तथा चर्णिकार के सामने भी नहीं था ऐसा उनकी व्याख्या से स्पष्ट ज्ञात होता है। अतः यहां प्राचारांग सूत्र तथा चूणि सम्मत पाठ ही रखा है। ___ इन 12 सूत्रों में "धरेई" से रखना व "पिणद्धेई" से पहनना एवं उपयोग में लेना ऐसा अर्थ समझना चाहिये / कई प्रतियों में 'पिणीइ, के स्थान पर 'परिभुजइ, क्रिया किसी सूत्र में उपलब्ध होती है जो चूणिकार के बाद हुआ लिपिदोष ही संभव है। अंग संचालन का प्रायश्चित्त 13. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अक्खंसि वा, अरुसि वा, उयरंसि वा, थणंसि वा गहाय संचालेइ, संचालतं वा साइज्जइ / 13. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री के अक्ष, उरू उदर. या स्तन को ग्रहण कर संचालित करता है या संचालित करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-चूर्णि-"अक्खा णाम संखाणियपएसा"-योनिस्थान "अहवा अण्णयर इंदियजायं अक्खं भण्णति' अथवा कोई भी इन्द्रिय अक्ष कहलाती है। "अक्खं-चक्षुः" राजेन्द्र कोश भा. ? "अवखपाय" शब्द / यहां योनि रूप अर्थ ही प्रासंगिक है / शरीरपरिकर्म आदि के प्रायश्चित्त 14-67 जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णमण्णस्स पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जतं वा साइज्जइ एवं तइयउद्देसगगमेण णेयव्वं जाव जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए गामाणुगामं दूइज्जमाणे अण्णमण्णस्स सोसवारियं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ / __ जो भिक्ष स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से आपस में एक दूसरे के पाँव का एक बार या अनेक बार घर्षण करता है या घर्षण करने वाले का अनुमोदन करता है। इस प्रकार तीसरे उद्देशक के (सूत्र 16 से 69) 54 सूत्रों के पालापक के समान जान लेना चाहिए यावत् जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए आपस में एक दूसरे के मस्तक को ढांकता है या ढांकने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन--यहाँ 'अण्णमण्णस्स' शब्द से दो साधु आपस में सूत्रोक्त प्रवृत्तियाँ करें इस अपेक्षा ये प्रायश्चित्तसूत्र कहे हैं / व्याख्याकार ने कहा है कि अर्थ विस्तार की अपेक्षा स्त्री के साथ या नपुंसक के साथ भी इन 54 सूत्रों में कहे कार्य करने पर प्रायश्चित्त आता है-ऐसा समझ लेना चाहिए / सचित्त पृथ्वी आदि पर निषद्यादि करने का प्रायश्चित्त 68. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडिवाए 'अणंतरहियाए' पुढवीए' णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, णिसीयावेतं वा तुयट्टावेतं वा साइज्जइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org