________________ 162] [निशीथसूत्र 9. मलयागिरिचन्दन के पत्रों से निष्पन्न वस्त्र, 10. बारीक बालों-तंतुओं से निष्पन्न वस्त्र, 11. दुगुल वृक्ष के अभ्यंतरावयव से निष्पन्न वस्त्र, 12. चीन देश में निष्पन्न अत्यन्त सूक्ष्म वस्त्र, 13. देश विशेष के रंगे वस्त्र, 14. रोम देश में बने वस्त्र, 15. चलने पर आवाज करने वाले वस्त्र, 16. स्फटिक के समान स्वच्छ वस्त्र, 17. वस्त्र विशेष 'कोतवो-वरको' 18. कंबल 19. कंबल विशेष-खरडग पारिगादि. पावारगा'। 20. सिंधू देश के मच्छ के चर्म से निष्पन्न वस्त्र / 21. सिन्धु देश के सूक्ष्म चर्म वाले पशु से निष्पन्न वस्त्र, 22. उसी पशु की सूक्ष्म पश्मी से निष्पन्न, 23. कृष्ण मृग चर्म, 24. नील मृग चर्म, 25. गौर मृग चर्म, 26. स्वर्ण-रस से लिप्त साक्षात् स्वर्णमय दिखे ऐसा वस्त्र, 27. जिसके किनारे स्वर्ण-रसरंजित किये हों ऐसा वस्त्र, 28. स्वर्ण-रसमय पट्टियों से युक्त वस्त्र, 29. सोने के तार जड़े हुए वस्त्र, 30. सोने के स्तबक या फूल जड़े हुये वस्त्र, 31. व्याघ्र चर्म, 32. चीते का चर्म, 33. एक प्रकार के प्राभरणों से युक्त वस्त्र, 34. अनेक प्रकार के पाभरणों से युक्त वस्त्र, बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है। 11. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से मूषक आदि के चर्म से निष्पन्न वस्त्र यावत् अनेक प्रकार के प्राभरणों से युक्त वस्त्र धारण करता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है। 12. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से मूषक आदि के चर्म से निष्पन्न वस्त्र यावत् अनेक प्रकार के प्राभरणों से युक्त वस्त्र पहनता है या पहनने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है ) विवेचन--अनेक प्रकार के वस्त्रों का व चर्मनिर्मित वस्त्रों का इन सूत्रों में वर्णन किया गया है। ___अाचारांग सूत्र में ये वस्त्र बहुमूल्य तथा चर्ममय कहे गये हैं। तथा इनके ग्रहण करने का सर्वथा निषेध किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org