________________ पांचवां उद्देशक] [147 46. जे भिक्खू रयहरणं अविहीए बंधइ, बंधतं वा साइज्जइ / 47. जे भिक्खू रयहरणस्स एक्कं बंधं देइ, देतं वा साइज्जइ / 48. जे भिक्खू रयहरणस्स परं तिण्हं बंधाणं देइ, देतं वा साइज्जइ / 49. जे भिक्खू रयहरणं अणिसिटुंधरेइ, धरतं वा साइज्जइ। 50. जे भिक्खू रयहरणं बोसट्टधरेइ, धरतं वा साइज्जइ। 51. जे भिक्खू रयहरणं अहिट्ठइ, अहिद्वैतं वा साइज्जइ / 52. जे भिक्खू रयहरणं उस्सीस-मूले ठवेइ, ठवेंतं वा साइज्जइ / 43. जो भिक्षु प्रमाण से बड़ा रजोहरण रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / 44. जो भिक्षु रजोहरण की फलियाँ सूक्ष्म बारीक बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है। 45. जो भिक्षु रजोहरण को "कंडूसग बंधन" से बाँधता है या बाँधने वाले का अनुमोदन करता है। 46. जो भिक्षु रजोहरण को प्रविधि से बाँधता है या बाधने वाले का अनुमोदन करता है / 47. जो भिक्षु रजोहरण के एक बंधन देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है / 48. जो भिक्षु रजोहरण के तीन से अधिक बंधन देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। 49. जो भिक्षु अकल्पनीय रजोहरण धारण करता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है। 50. जो भिक्षु रजोहरण को शरीर-प्रमाण क्षेत्र से दूर रखता है या रखने वाले का अनुमोदन 51. जो भिक्ष रजोहरण पर अधिष्ठित होता है या अधिष्ठित होने वाले का अनुमोदन करता है। करता है। 52. जो भिक्षु सोते समय रजोहरण को शिर के नीचे-सिरहाने रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन--रजोहरण" शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से फलियों के समूह भाग की अपेक्षा से कहा गया है। क्योंकि अधिक प्रमाण, सूक्ष्म फलियाँ, अधिष्ठित होना, सिरहाने रखना आदि कार्यों का सम्बन्ध उनके लिए ही संगत होता है / 1. अइरेगपमाणं--फलियों के समूह का घेरा प्रमाणोपेत होना चाहिए / रजोहरण के द्वारा एक बार में पूजी हुई भूमि में अपना पांव आ सके, इतना प्रमाण फलियों के समूह का होना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org