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________________ हम पूर्व पंक्तियों में लिख चुके हैं छेद-सूत्रों को प्रायश्चित्तसूत्र कहा गया है। स्थानांग में श्रमणों के लिए पांच चारित्रों का उल्लेख है-१. सामायिक, 2. छेदोपस्थापनीय, 3. परिहारविशुद्धि, 4. सूक्ष्मसंपराय, 5. यथाख्यात' / इनमें से वर्तमान में अन्तिम तीन चारित्र विच्छिन्न हो गये हैं। सामायिक चारित्र स्वल्पकालीन होता है, छेदोपस्थापनिक चारित्र ही जीवनपर्यन्त रहता है। प्रायश्चित्त का सम्बन्ध भी इसी चारित्र से है। सम्भवतः इसी चारित्र को लक्ष्य में रखकर प्रायश्चित्तसूत्रों को छेदसूत्र की संज्ञा दी गई हो दशाश्रुतस्कन्ध, व्यवहार और बृहत्कल्प ये सूत्र नौवें प्रत्याख्यान पूर्व से उद्धृत किये गये हैं / उससे छिन्न अर्थात् पृथक करने से उन्हें छेदसूत्र की संज्ञा दी गई हो, यह भी सम्भव है / 3 निशीथसूत्र के उन्नीसवें उद्देशक के सत्रहवें सूत्र में छेदसूत्र को 'उत्तमश्रुत' कहा गया है। संघदासगणि ने निशीथभाष्य में छेदसूत्र को उत्तमश्रुत माना है। जिनदासगणि महत्तर ने निशीथचूर्णि में यह प्रश्न उपस्थित किया है और पुन: उन्होंने ही प्रश्न का समाधान करते हए लिखा है कि छेदसूत्र में प्रायश्चित्तविधि का निरूपण होने से वह चारित्र की विशुद्धि करता है, तदर्थ ही छेदसूत्रों को उत्तमश्रुत कहा गया है।" उत्तमश्रत शब्द पर चिन्तन करते हुए एक जिज्ञासा अन्तर्मानस में उबुद्ध होती है कि छेदसूत्र कहीं 'छेक' सूत्र तो नहीं है ? छेकश्रुत का अर्थ है कल्यामश्रुत और उत्तमश्रुत / दशाश्रुतस्कन्ध की चूणि में दशाश्रुतस्कन्ध को 'छक सूत्र का प्रमुख ग्रन्थ माना है।६ दशाश्रतस्कन्ध प्रायश्चित्तसूत्र नहीं है। वह तो प्राचारसूत्र है। इसीलिए दशाश्रुतस्कन्धणि में दशाश्रुतस्कन्ध को चरणकरणानुयोग में लिया गया है। यदि छेदसूत्र को छेकसूत्र मान भी लिया जाय तो किसी प्रकार की आपत्ति नहीं हो सकती / प्राचार्य शय्यंभव के दशवकालिकसूत्र में-जं छेयं तं समायरे पद प्राप्त है। यहां पर छेय शब्द से छेक होने की पुष्टि होती है। षट्खण्डागम, सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराजवातिक,'१ गोम्मटसार जीवकाण्ड 2 प्रति दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में आग मसाहित्य के दो विभाग किये गये हैं-अंगबाह्य और अंगप्रविष्ट / पर इनमें छेद इस 1. (क) स्थानांगसूत्र 5, उद्देशक 2, सूत्र 428 (ख) विशेषावश्यकभाष्य गा. 1260-70 2. कतरं सुत्तं ? दसाउकप्पो बवहारो य / कतरातो उद्धतं ? उच्यते पच्चक्खाणयुवाओ। -~-दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि, पत्र 2 निशीथ. 19 / 17 छेयसुयमुत्तमसुयं / --निशीथभाष्य, 6184 छेदसयं कम्हा उत्तमसुतं ? भण्णति-जम्हा एत्थं सपायच्छित्तो विधि भण्णति, जम्हा ये तेणच्चरणविसूद्धि करेति, तम्हा तं उत्तमसुतं / -निशीथभाष्य, 6184 की चूर्णि / इमं पुण च्छेयसुत्तपमुहभूतं / –दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि, पत्र 2 7. दशवकालिक 4.11 निसीहज्झयणं प्रस्तावना / -आचार्य तुलसी षट्खण्डागम, भाग 1. पृ. 96 सर्वार्थसिद्धिः पूज्यपाद, 1-20 11. तत्त्वार्थराजवार्तिक: अकलंक, 1-20 12. गोम्मटसार जीवकाण्ड: नेमीचन्द्र, पृ. 134 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ,
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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