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________________ 104] [निशीथसूत्र व्याख्या में लौकिक वय॑ कुल और शय्यातर कुल का भी वर्णन है किन्तु उनका प्रायश्चित्त अन्यत्र कहा गया है। अतः यहां अनिवार्य आवश्यकता के समय में भिक्षार्थ जाने के लिये स्थविरों के द्वारा स्थापित कुलों को ही स्थापनाकुल समझना चाहिये / साध्वी के उपाश्रय में प्रविधि से प्रवेश करने पर प्रायश्चित्त 34. जे भिक्खू णिग्गंथीणं उवस्सयंसि अविहीए अणुप्पविसइ, अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ / 34. जो भिक्षु निम्रन्थियों के उपाश्रय में प्रविधि से प्रवेश करता है या अविधि से प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त अाता है।) विवेचन साध्वी के उपाश्रय में साधु किन-किन कारणों से जा सकता है, भाष्यकार ने इसका वर्णन किया है तथा प्रविधि से प्रवेश करने पर अनेक दोषों की संभावनाएं कही हैं / ___"अविधि"---प्रवेश करने से पूर्व सूचना दिये बिना प्रवेश करता अर्थात् मौन रहकर प्रवेश करना अविधि-प्रवेश कहलाता है। साध्वी के उपाश्रय के बाहर अर्थात मुख्य प्रवेशद्वार के बाहर ठहर कर संबोधन के शब्दों से अपने आने की सूचना देना और साध्वियों को जानकारी हो जाने के कुछ समय बाद प्रवेश करना अथवा सूचना देने के बाद साध्वियों के सावधान हो जाने पर किसी साध्वी के द्वारा 'पधारों" इस तरह संकेत रूप शब्द के कहने पर प्रवेश करना "विधि-प्रवेश" कहलाता है / प्रवेश करते समय "णिसीहि" शब्दोचारण करने की व्याख्या भी मिलती है किन्तु यह व्याख्या उपयुक्त नहीं लगती, क्योंकि उपाश्रय में प्रवेश करते समय प्रत्येक साध्वी के इस शब्द का उच्चारण करने की विधि होती है अतः साधु के प्रवेश करने का योग्य भिन्न शब्द संकेत रूप होना चाहिये अथवा श्रावक या श्राविका के द्वारा सूचना करवा देने के बाद प्रवेश करना चाहिये। तात्पर्य यह है कि साधु के प्रवेश की जानकारी साध्वी को हो जानी चाहिए / आगमोक्त कारण बिना प्रवेश करना भी अविधि-प्रवेश ही है। विशेष जानकारी के लिए भाष्य का अध्ययन करना चाहिए। साध्वी के आगमन-पथ में उपकरण रखने का प्रायश्चित्त 35. जे भिक्खू णिगंथीणं आगमणपहंसि, दंडगं वा, लट्ठियं वा, रयहरणं वा, मुहपोत्तियं वा अण्णयरं वा उवगरणजायं ठवेइ, ठवेंतं वा साइज्जइ / / 35. जो भिक्षु साध्वी के आने के मार्ग में दंड, लाठी, रजोहरण या मुखवस्त्रिका आदि कोई भी उपकरण रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन--जब साधुनों के उपाश्रय में साध्वियों के आने का समय हो उस समय उनके आने के मार्ग में कोई उपकरण नहीं रखना चाहिए। रास्ते के सिवाय प्राचार्य आदि के पास पहुँचने तक का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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