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________________ चतुर्य उद्देशक 21. जो भिक्षु ग्रामरक्षक की प्रशंसा --गुणकीर्तन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 22. जो भिक्षु देशरक्षक की प्रशंसा-गुणकीर्तन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 23. जो भिक्षु सीमारक्षक की प्रशंसा--गुणकीर्तन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। ____24. जो भिक्षु राजरक्षक की प्रशंसा-गुणकीर्तन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 25. जो भिक्षु सर्वरक्षक की प्रशंसा-गुणकीर्तन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त पाता है / ) ग्रामरक्षक आदि को आकर्षित करने का प्रायश्चित्त 26. जे भिक्खू "गामारक्खियं" अत्थोकरेइ, अत्थीकरेंतं वा साइज्जइ / 27. जे भिक्खू "देसारक्खिय" अत्थोकरेइ, अत्यीकरेंतं वा साइज्जइ / 28. जे भिक्खू “सीमारक्खियं" अत्थोकरेइ, अत्थीकरेंतं वा साइज्जइ / 29. जे भिक्खू "रण्णारक्खियं” अत्थोकरेइ, अस्थीकरेंतं वा साइज्जइ / 30. जे भिक्खू "सव्वारक्खियं" अत्थीकरेइ, अत्थोकरेंतं वा साइज्जइ / 26. जो भिक्षु ग्रामरक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है या आकृष्ट करने वाले का अनुमोदन करता है। 27. जो भिक्षु देशरक्षक को अपनी तरफ अाकृष्ट करता है या आकृष्ट करने वाले का अनुमोदन करता है। 28. जो भिक्षु सीमारक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है या आकृष्ट करने वाले का अनुमोदन करता है। 29. जो भिक्षु राजरक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है या आकृष्ट करने वाले का अनुमोदन करता है। 30. जो भिक्षु सर्वरक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है या आकृष्ट करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-इन सूत्रों के विषय का भाष्य चूर्णी में संकेत मात्र है, यथाचूर्णी-एवं पण्णरस्स सुत्ता उच्चारेयव्वा / अर्थः पूर्ववत् / भाष्यगाथा-अत्तीकरणादीसु, रायादीणं तु जो गमो भणियो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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