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________________ चतुर्श उद्देशक राजा आदि को अपने वश में करने का प्रायश्चित्त-- 1. जे भिक्खू "राय" अतोकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ / 2. जे भिक्खू "रायारक्खियं" अतीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ / 3. जे भिक्खू "नगरारक्खियं” अतीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ / 4. जे भिक्खू "निगमारक्खियं" अत्तीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ / 5. जे भिक्खू "सव्वारक्खियं" अत्तोकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ / 1. जो भिक्षु राजा को वश में करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 2. जो भिक्षु राजा के अंगरक्षक को वश में करता है या वश में करने वाले का अनुमोदन करता है। 3. जो भिक्षु नगररक्षक को वश में करता है या वश में करने वाले का अनुमोदन करता है। 4. जो भिक्षु निगमरक्षक को वश में करता है या वश में करने वाले का अनुमोदन करता है। 5. जो भिक्षु सर्वरक्षक को वश में करता है या वश में करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है / ) विवेचन---अत्तीकरेइ-अपने अनुकूल बनाना या वश में करना / वश में करने के प्रशस्त और अप्रशस्त कारण तथा उपाय होते हैं, यहाँ प्रशस्त कारण से और प्रशस्त प्रयत्न से वश में करने पर लघुमासिक प्रायश्चित्त कहा गया है / शेष विवेचन भाष्य से जानें / राजा आदि के वश में करने से होने वाली हानियाँ बताते हुए भाष्य में कहा गया है कि राजा तथा उसके स्वजन अनुकूल होने पर संयम-साधना में बाधक बन सकते हैं और प्रतिकूल होने पर उपसर्ग भी कर सकते हैं। विशेष संकट आने पर संघ हित के लिए राजा आदि को यदि अनुकूल करना आवश्यक हो तो यह प्रशस्त कारण है तथा अपने संयम एवं तपोबल से प्राप्त लब्धि द्वारा इन्हें वश में करना प्रशस्त प्रयत्न है। झूठ कपट आदि पाप युक्त प्रवृत्तियों से इन्हें वश में करना अप्रशस्त प्रयत्न है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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