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________________ 72] [निशीथसूत्र मलहम लगाकर, तेल यावत् मक्खन से एक बार या बार-बार मालिश करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 39. जो भिक्षु अपने शरीर के गंडमाल, गूमड़े, फुसियों, मसे या भगंदर को किसी तीक्ष्ण शस्त्र से काटकर, पीप, खून निकालकर, शीतल या उष्ण जल से धोकर किसी भी प्रकार का मलहम लगाकर. तेल यावत मक्खन से मालिश करके किसी सुगंधित पदार्थ से एक बार या बार-बार सूवासित करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-१. गच्छतीति गंडं, तं च गंडमाला / / नि. चू. // "उच्चप्रदेशात् नीचप्रदेशं गच्छति" सः गंडमाला "कंठमाला" इति लोकप्रसिद्धः। नि. घा.॥ -~-कान के नीचे व कंठ और गर्दन से सम्बन्धित व्याधिविशेष / 2. पिलगं तु पादगतं गंडं / // नि. चू. | यहाँ पाँव के गूमडे से पूरे शरीर में होने वाले गूमड़े समझ लें क्योंकि सूत्र में "पिलगं" शब्द ही है। 3. "अरइयं वा" अरतितो जं न पच्चति // नि. चू.॥ रक्तविकारेण जायमाने लघु व्रण जरूपे / यस्यां खर्जने तत्समये सुखमिव जायते पश्चात् दुःखाधिक्यम् "फुन्सीति" लोकप्रसिद्धम् // नि. घा.॥ जिनके द्वारा शरीर अरतिकर हो जाता है, ऐसी साधारण गर्मी की फुसिया या विशिष्ट (चेचक-अोरी-अचपडा आदि) फुसी समूह / 4. असियं-अहिट्ठाणे णासाए व्रणेसु वा भवति / " // नि. चू. / / अर्शी वा, गुदागतो रोगः "बवासीर" इति लोकप्रसिद्धः।" // नि. घा.॥ 5. भगंदर-गुह्य स्थान गत रोग विशेष / एक्कसि ईषद् वा आच्छिदणं, बहुवारं सुठ्ठ वा छिदणं विच्छिदणं / / / नि. चू.॥ इस सूत्र षष्टक के प्रत्येक सूत्र को चूर्णी में बताया है कि पूर्वोक्त सूत्र का पूरा आलापक कह करके बाद में विशेष पालापक कहना चाहिए। "पुव्वसुत्तं सव्वं उच्चारेऊण इमे अइरित्ता आलावगा।" अत: यहाँ पूर्व सूत्र का पूरा पाठ स्वीकार किया गया है और अर्थ संक्षिप्त किया है। यहाँ शस्त्र के पालेवण के और धूव के साथ अण्णयरं या जातं शब्द का प्रयोग हुआ है। इसका प्राशय यह है कि ये अनेक प्रकार के होते हैं उनमें से किसी भी एक प्रकार का यहाँ विवक्षित है। पूर्व के अनेक पालापकों में पहले अभ्यंगन सूत्र पाया है, बाद में उबटन सूत्र / किन्तु यहाँ पर पहले आलेपन सूत्र है फिर अभ्यंगन सूत्र है। इससे यह समझना चाहिए कि इन गंड आदि में ये 6 सूत्रगत क्रियाएँ इस क्रम से होती हैं, / इन सूत्रों को ऋमिक व सम्बन्धित सूत्र समझना चाहिए। किन्तु पूर्व के आलापकों में वर्णित क्रियाएँ अक्रमिक व स्वतंत्र हैं तथा दोनों पालापकों में अालेपन और उबटन ये भिन्न-भिन्न क्रियाएँ हैं ऐसा समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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